अगर ये न होते
अगर आँखों में
आँसू न होते जी
शिकवा होता न
न महबूब रोते
रोने से यूँ भी प्रिये
फ़र्क क्या पड़ता है
बस थोड़ा शायरी में
वजन बढ़ जाता है।।
सच के सौदागर देखो
मगरमच्छ पकड़ लाये
रोने लगा अचानक वो
कहाँ आँसू ठहर पाये
हिम्मत है तो दिला दो
तुम भरोसा जमाने को
हार जाओगे, तुम मियां
कुछ अश्क बहाने को।।
काल की चाल में कोई
भला यहाँ कब ठहरा
उड़ा हवा में पात सम
वृक्ष को है कब अखरा।।
सूर्यकान्त