डरना क्या है?
अगर यही है जीना, तो मरना क्या है?
आए गर मौत भी, तो डरना क्या है?
कितना ही जिओ, है एक दिन मरना ,
है यही मुकर्रर, फिर मुकरना क्या है?
गर नही हो तुम मोहताज दिन के ,
तो रात भर यूँ आहे भरना क्या है?
है सांसो का जो सिर्फ आना जाना,
ऐसी जिंदगी का फिर करना क्या है?
दायरा है जिसका यूँ ही बस गोल-गोल
वक्त का ऐसे फिर गुज़रना क्या है?
निखर के आना फिर बिखर ही जाना
बीच में यूँ ‘अभि’ फिर सँवरना क्या है?
©अभिषेक पाण्डेय अभि