अगर निगाहें न मिल सकेंगी, तो दिल की बातें कहोगे कैसे
#विधा? #ग़ज़ल
#बह्र? #बहर-ए-रजज़ #मुसम्मन_मख्बून_मुरफ़्फ़ल
#अरकान ? #मफ़ाइलातुन_मफ़ाइलातुन_मफ़ाइलातुन_मफ़ाइलातुन
#मापनी? 12122 12122 12122 12122
#काफ़िया? ओगे
#रदीफ़? कैसे
…
रचना
अगर निगाहें न मिल सकेंगी, तो दिल की बातें कहोगे कैसे,
हुआ है गर तुमको इश्क़ हमसे, बिना कहे तुम रहोगे कैसे।
जो दिल में तेरे वही मुकम्मल, उसी को मिलती जहां की खुशियाँ,
नहीं मिलाओगे दिल को दिल से, तो दिल की बातें सुनोगे कैसे।
गुज़र न जाए मिलन की बेला, करीब से भी करीब आओ,
जो सहमे सहमे डरे रहोगे, तो खुल के हमसे मिलोगे कैसे।
है बेरहम बेवफा ज़माना, मोहब्बतों से है दुश्मनी सी,
अगर मुहब्बत जवां न होगी, ज़माने से फिर लड़ोगे कैसे।
“सचिन” की बातें भले हों कड़वी, दवा के माफिक हैं काम करतीं,
अमल न लाओगे प्यारे मोहन, कहानियाँ तुम गढ़ोगे कैसे।
पूर्णतः स्वरचित , स्वप्रमाणित
पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण
बिहार