अगर तुम कहो
नेह से एकटक देख तुमको प्रिये
मौन का गीत गा लूंँ अगर तुम कहो
होंठ माथे पे रख कर के सांँसों से मैं
रूह को रंँग लगा लूंँ अगर तुम कहो
अपनी बाहों में तुमने जो साधा ; मेरी-
तो अनायास ही साधना हो गई
ज्यों ही मैंने समर्पित हृदय को किया
वासना भी तो आराधना हो गई
मैंने भी प्रेम को मन में पूजा सखी
मैं भी परसाद पा लूंँ अगर तुम कहो
होंठ माथे पे …….।
जब मधुप ने सुरभि को निहारा प्रिये
पुष्प रस की स्वयं कामना छोड़ दी
मेरी पलकों ने आंँसू सजाए प्रिये
और अधरों ने भी वासना छोड़ दी
तुमको मन में बिठा कर के होली पे भी
मैं दिवाली मना लूंँ अगर तुम कहो
होंठ माथे पे ……।
स्पर्श पाकर तुम्हारा छुए बिन तुम्हें
मैं भी होली मना लूंँ अगर तुम कहो !
-आकाश अगम