अगर तुमने की बेवफाई न होती
अगर श्याम बंसी बजाई न होती
तो राधा ने सुध बुध गँवाई न होती
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मिली माँ की जो रहनुमाई न होती
मेरी जिन्दगी मुस्कुराई न होती
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ये जल्वागरी भी नुमाई न होती
जो रुख़ से ये जुल्फें हटाई न होती
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रचाते न मधुबन में वो रास लीला,
जो राधा से गर आशनाई न ????????
सिखाते न तुम जो अदब की ये बातें
ग़ज़ल छंद दोहा रुबाई न होती
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बचाते न जाकर वो गज को कन्हैया
अगर टेर दिल से लगाई न होती
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धरा पर मसीहा वो बनकर न आते
घटा पाप की जो ये छाई न होती
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ग़मे हिज़्र में न जलते शबो-दिन
अगर तुमने की बेवफ़ाई न होती
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मेरी तिश्नगी फिर न मिटती जो तुमने
हमें जामे उल्फ़त पिलाई न होती
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गले मौत को हम लगाते न “प्रीतम”
मेरे सामने गिड़गिड़ाई न होती
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)