“जंग कभी अच्छी नहीं लगी उसे”
जंग कभी अच्छी नहीं लगी उसे
बस जिंदगी की गुलाम थी~हसरतों से बहुत दुर पर आसमान के बहुत पास~ख्वाबों से इतना इश्क~हकीकत भी शरमा जाए…?
उसे पता था बस एकबार आँख बंद और सब खत्म
कैसी रंजिश~कैसा झगड़ा ~किससे और क्युं
कुछ और न…सही
भीड़ में भागती सड़को पर सामने कोई पहचाना गुजर जाए और तुम एक मुस्कुराहट भी न दे सको
………न
क्या करना ऐसी सांसों का~बस इतनी सी थी जिंदगी~बस इतनी सी पर उसके लिये बहुत क्योंकि उसे पता था
गलती के लिये आँख दिखाने का मतलब सामने वाले का हमेशा के लिये खत्म हो जाना नहीं होता
?
अगर कुछ बस में नहीं है तो सांस
बस उसे रोशनी देना ~ लेने वाले के हिस्से है…बेखौफ
?
अगर वो न मुस्कुराये तो जिंदगी की कहानी में दुश्मन का किरदार निभा गया शख्स भी कुछ पल के लिये मायुस हो जाता…?
जैसे कह रहा हो
मुझे तुम पसंद नहीं हो पर मुस्कुराओ न ?
हाँ,
आसान नहीं ये कमाई
जिंदगी हर पल उससे कहती है आज भी…हकीकत से परे जो दुनिया है तुम्हारी
वहां कुछ और हो न हो
बस….शतरंज नहीं है
फर्क नहीं पड़ता
तुम्हारी आँखें बंद है या खुली
बस इतना याद रखना
ईश्वर के दायरे में जिंदगी बस उस पल में वहीं तक है
जबतक………वो शतरंज नहीं है….तुम्हारे लिये!
©दामिनी ?️ ?