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14 May 2021 · 1 min read

अखियां लोर झरेला झर-झर (राधेश्यामी मत्त सवैया छंद) भोजपुरी

विधा:- राधेश्यामी या मत्त सवैया छंद
विधान:- ३२ मात्रिक, १६ पर मति।प्रारंभ द्विकल या चौकल
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बोली मिठा बोल बोल के, हर दिन हमरा के भरमावल।
खिड़की से ऊ ताक-झांक आ, देखल हमसे नैन लड़ावल।।

मन से तोहर याद मिटा के, कइसे तोहे हम बिसराईंं।
गोरी तो से दूर रहे से, बढ़िया माहुर खा मर जाईं।
कइसे हम से दूर रहेलू, का कबहुं ना याद करेलू।
जइसे विरहा हमें जरावे, का धनिया कबहुं न जरेलू।।
अखियां लोर झरेला झर – झर, याद रहल ऊ बात बनावल।
खिड़की से ऊ ताक-झांक आ, देखल हम से नैन लड़ावल।।

रहिया मे मिलला पर हम से, कनखी ताक तनिक मुसकाइल।
बतिया करत करत ऊ तो्हर, सर नीचे कइके सकुचाइल।
सांचे बात ना झूठ कहिला, बिनु तोहरे रहलो न जाला।
जब से गइलू छोड़ हमे तू, भगिया में लागल बा ताला।
जोन्ही गर कहतू तऽ लइतीं, पर बा अब बेकार बतावल।
खिड़की से ऊ तांक-झांक आ, देखल हम से नैन लड़ावल।।

बेधत बा ई पीर हिया में, कबले बोलऽ दर्द छुपाईं?
का कबहुं हमरे जीवन में, सुख के दिवस कहूँ पर आई?
लागल नेह छुड़ा के गइलू , का तनिका तब आह न आइल?
कइसन बहल बयार नजाने, फुटली आंख न हमें सुहाइल।
पल-पल याद करीं दिल जानी, जोड़ल बंधन नेह छुड़ावल।
खिड़की से ऊ तांक-झांक आ, देखल हम से नैन लड़ावल।।

✍️ पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’

Language: Hindi
Tag: गीत
1 Like · 850 Views
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