अखबार
ये जिंदगी मेरी क्यों अखबार हो गयी है,
छोटी छोटी बातों का प्रचार हो गयी है,
सब नजर रखते हैं हर पल मुझ पर,
लगता है जैसे कोई इश्तिहार हो गयी है।
मेरे हर व्यवहार पर रहती है सबकी नजर,
मेरे हर पल की रहती है सबको ही खबर,
कभी सुर्ख़ियों में बातों की मैं होती हूँ,
मेरे ऊपर सबकी होती निगाह हर पहर।
ये जिंदगी मेरी क्यों अखबार सी हो गयी है,
देख कर लोगों की सोच मन बेजार हो गयी है,
निजी हो या सामाजिक जिंदगी मेरी,
लगता है लोगों को मेरी हर वक्त दरकार हो गयी है।
सुकून का कोई पल नसीब नही होता है मुझे,
हर वक़्त मेरी बातें उलझा देता है मुझे,
चाहती हूं कि दुनिया की शोर से दूर जाऊँ,
अखबार सी दिखने की आदत हो गयी है मुझे।
चलो एक दिन का अखबार की तरह छुट्टी मनाऊं,
लोगों के पारखी नजरों से दूर जाकर मुस्कुराऊँ,
जी लो अपने हिसाब से जिंदगी को मैं वहाँ,
हँसी खुशी से रहूं और जिंदगी के गीत गुनगुनाऊँ।