अक्सर ______
अक्सर_________✍️
हम तुम्हें ढूंढ़ते हैं तन्हाई में अक्सर
जैसे विरह में हंस लाव – लश्कर
ना मिलने पर ख़ूब अश्रु बहाते फ़िर छुप – छुपकर
पता पूछती हैं यादें ख़्वाब भी जाते हैं फ़िर मुकर,
सावन की पहली मुलाक़ात याद आती हैं रह रहकर
उत्साहित था मन फ़िर तुझे पाकर
संतुष्ट थे सदियों से व्याकुल नयन सजल
जैसे सावन कि रिमझिम में प्रफुल्लित कंवल,
एक तो वो कमसिन उम्र की नादानियां हमारी
अमिट छाप छोड़ती थी उस पर पागल बातें तुम्हारी
तेरा छुपके से आना आकर आँखों पर हाथ रखना बहुत प्यारी थी शरारत तुम्हारी
ना हीर को रांझा मिला ना मोहन को राधा तुम्हारी बस सबकी मोहब्बत जमाने से हारी ,
अब डर लगता है चढ़ती अल्हड़ घटाओं से
बारिश के रूप में याद बरसाती हैं फिर तुम्हारी
अब डर लगता है उस खिड़की के पास बैठने से जिस खिड़की के पास बैठकर खत लिखा था और उस में करुणा लिखीं थी तुम्हारी – हमारी,
कलम भी रो देती हैं हमारी किस्मत लिखकर अक्सर
क्यों जमाना हों गया प्रीत का तस्कर
हम तुम्हें ढूंढते हैं तन्हाईयो में अक्सर
जैसे विरह में हंस लाव – लश्कर ।
_____ स्वरचित ✍️
संदीप गौड़ राजपूत ______