अक्सर दिखते हैं…
अक्सर दिखते हैं…
लाल बत्ती पर…
तो कभी फुटपाथों पर !
कभी आँसू लिए …
तो कभी आँसू पिए !
कभी नंगे बदन…
तो कभी चिथड़ों से ढके तन !
कोई रेल में भीख माँगते हुए…
कोई दी हुई जूठन खाते हुए !
न जाने कितने मजबूर…
न जाने कितने मज़दूर !
अक्सर दिखते हैं…
कातर अखियाँ…
जर्जर काया !
कहीं खुद लाचार…
तो कहीं पूरा परिवार !
खुले गगन तले, रैन बसेरा…
संग भूख करे है, तन-मन दोहरा !
शरद रातें जब हाड़- कंपाए..
अक्सर मिलते ये, अलाव जलाए !
न जाने कितने मजबूर…
न जाने कितने मज़दूर !
अक्सर दिखते हैं…
अंजु गुप्ता