अक्सर टूट जाती है
कसक कोई हमेशा दिल में या रब छूट जाती है
पकड़ता हूँ मै जो डाली वो अक्सर टूट जाती है
भरा जाता है जिसमें पाप को बचना नहीं मुमकिन
भले मजबूत हो कितनी वो हाँडी फूट जाती है
डकैती डालती है दिनदहाड़े है बड़ी जालिम
किसी का भी हो घर मजहब हमेशा लूट जाती है
है जलवा झूठ का परवाज ऊँचे आसमानों की
मैं सच लिखता हूँ तो सत्ता सियासत रूठ जाती है
है हर कुर्सी पे एल्कोहल लिए ईमान का पानी
बनाकर जाम पैमाने में कुर्सी घूँट जाती है