अक्टूबर की सुबह
अक्टूबर की सूबह!
सुबह सात बज गये पर धूप कहीं नहीं यही आलम जून-जुलाई में हो तो बात ही कुछ और हो।नीले आकाश में ठहरे सफेद पुष्ट बादल मानो बड़ी बर्फ का खंड हो।वो कुछ कदम चला लैंप पोस्ट के करीब जाकर कमर लगाकर खड़ा होना चाहा पर लैंप पोस्ट पर बिखरे ओस के कणों को देखकर वहीं सिमट गया और दोनों बाजुओं को अपने बलिष्ठ वक्षों में दबा लिया।आसमां में सफेदी आने लगी और पंछियों का कलरव दूर घने आकाश में गुंजने लगा।
मनोज शर्मा