अक्का देवी
किसी समाज की आधार शिला स्त्री
हर उत्पात का हुआ कारण कहा स्त्री
इसके सभी गुणों को रखा गया छिपाकर
लेकिन सौन्दर्य वखान किया उजरा कर कर
आखिर क्यों सत्य कहने न दिया
आखिर क्यों सत्य लिखने न दिया
हमेशा ही किया जिसने संघर्ष
हमेशा ही पाया फिर उत्कर्ष
मीरा की भक्ति का प्याला
राधा का प्रेम बांसुरी वाला
सत्य नहीं षड्यन्त्र रचाया
प्रेम समर्पण में ही दर्शाया
शक्ति ज्ञान की देवी कहकर
नवरात्री में मात बुलाया
छिपाई गई रिशिकाएं सभी
विद्वान रहीं महिलाएं कभी
रसोई बिस्तर तक सीमित कर छोड़ा
जब मन हुआ तब उसका तन छेड़ा
हे अक्का देवी क्यों तुझे भुलाया
तेरी भक्ति को नहीं कभी गाया
हाय एक स्त्री शिव मय हो गई
ये कैसी प्रकृति से भूल हो गई
ओह पुरुष की निंदा हो जाती
यदि तेरी महिमा भी गाई जाती
तू विदुषी महान शैव मती
भस्म लपेटे तन में रहती ‘
आखिर हुई तपस्या में लीन
तेरी भक्ति उन्नत प्रवीण
तुझको करती मैं कोटि नमन
तेरी धुन का महदेवी स्मरण