……….अकेला ही…….
……….अकेला ही…….
अकेले ही चलना पड़ता है
मुश्किलों से संभलना पड़ता है
तूफानों से जीतना है अगर
खुद को सिकंदर बनना पड़ता है
काटनी है अगर फसल भी तो
धूप मे जलना पड़ता है
आसान नहीं है अनाज को भी घर में ले आना
ठंड भरी रातों में ठिठुरना पड़ता है
आंखें भी यूं ही नही दिखती खूबसूरत
उन्हे भी काजल की कालिमा को सहना पड़ता है
चमकना है अगर बाजार में
खुद को आइना बनना पड़ता है
मिलती नही खुशियां
महज ख्यालों से ख्वाबों से
जलती आग की तरह तपना पड़ता है
अकेला ही चलना पड़ता है
खुद ही गिरना और संभलना पड़ता है
…………………….
नौशाबा जिलानी सूरिया
महाराष्ट्र