अकेला पेड़
अकेला पेड़ कभी भी अकेला नहीं होता
वो दिखने में तन्हां सा पेड़ तन्हां नहीं होता।
गुज़रते मुसाफ़िरों को बारिश-धूप से बचाता है
वो तन्हां पेड़ सदियों की कहानी सुनाता है।
उसके छाँव तले बैठने वालों की कमी नहीं होती
और टहनियों पर गिलहरियों-बंदरों की थमी नहीं होती।
परिंदा तो पैदा ही पेड़ पर बने घोंसले में होता है
कहाँ ये अकेला पेड़ अकेला होता है।
फलों से लद जाए तो पत्थर मारने वालों से
और सूख जाए तो काटने वालों से घिर जाता है
वो तन्हां सा दिखनेवाला पेड़ सचमें तन्हां नहीं होता
अकेला पेड़ कभी भी अकेला नहीं होता।
-जॉनी अहमद ‘क़ैस’