– अकेला था अकेला ही रहना चाहता हु –
अकेला था अकेला ही रहना चाहता हु –
दुख में पीड़ा में,
संताप में कुंठा में,
ना था साथ में कोई रिश्तेदार,
न ही कोई सदस्य जो कहलाता परिवार,
रिश्ते दार भी दूर हुए,
नही थे पैसे पास,
अपनो ने दिया दगा जो अपनो पर दिया लुटाय,
कहते थे जो है हम अपने तेरे,
मांग लेना मदद समय आने पर आप,
आज जरूरत कुछ आन पड़ी न जब अर्थव्यवस्था पास,
पीछे धर गए पैर सब अपने,
न मदद की उनसे अब आस,
समय बड़ा बलवान है ,
उनको नही यह ज्ञात,
आया है बुरा समय तो अच्छा समय भी आत,
पर इस कठिन परीक्षा ने तुम सब की औकात दिए बतात,
अपने दम पर परिश्रम से,
समय को मोड़ लाऊंगा में,
आएगा जब अच्छा समय धन होगा मेरे भी पास,
आज जो अकेला हु तो परिवार नाम पर कोई नही है,
तब भी ना होगा कोई पास,
क्योंकि अकेला था और अकेला ही रहना चाहता हु,
✍️ भरत गहलोत
जालोर राजस्थान