‘अकेलापन’
जब जी चाहे मिलने आ जाया कीजिए,
दिल रखने को ही सही ये कहा कीजिए।
अकेले ही हम सब आए हैं इस जहाँ में,
जिन्दगी चार दिन की है मिला कीजिए।
आज हम हैं अकेले कल तुम भी तो होंगे,
इन अकेली रश्मों को क्यों न विदा कीजिए।
बंदिशों की बेड़ियाँ काटना तो सीखो ज़रा,
त्याग तल्खियाँ आपसी, कभी हंसा कीजिए।
उम्र कब निकल गई गीत गुनगुनाते हुए,
ज़फ़ा के बदले में सभी से वफ़ा कीजिए।