” अकेलापन की तड़प”
” अकेलापन की तड़प”
अकेलापन की तड़प, दिल को छू जाती है,
विचारों की गहराई में, मुस्कान खो जाती है।
अजनबी सी राहों में, खोया हुआ दिल,
सपनों की ख्वाहिश में, बस एक जलन रही है।
साथी की तलाश में, चल पड़ा हूँ अकेला,
पर राह में रौशनी, कहीं नहीं मिलती है।
धुंधली सी आस है, ख्वाबों की यादों में,
धड़कनों की धड़कन, एक अजनबी सी सुनाई देती है।
अकेलापन की तड़प, इस दिल को जलाती है,
पर उम्मीद की किरण, हमेशा जगमगाती है।।
“पुष्पराज फूलदास अनंत”