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31 Jul 2021 · 44 min read

अकेलापन : “एक संघर्षपूर्ण जीवन”

“मुबारक हो! मैडम अवस्थी।” भला ऐसे ही थोड़े एडमिशन मिल जाता है कॉलेज में, वो भी पंजाब (जालंधर) के अच्छे कॉलेज में। यह तो शिवा की अच्छी किस्मत है जो शहर के इतने बड़े कॉलेज में पढ़ने जा रहा है।

यह तो आपने ठीक कहा, “बड़ी मुश्किल से एडमिशन हुआ है शिवा का।” पहले तो यह घबरा रहा था अकेले जाने को; फिर हमारी जान-पहचान के दो और लड़कों ने एडमिशन के बारे में हमसे पूछा और एडमिशन करवा ली, तब जाकर शिवा रिलैक्स फ़ील करने लगा।

“माँ”, मुझे कॉलेज से कॉल आई थी। “परसों से बुला रहे हैं कॉलेज वाले।”

मुबारक हो बेटा “शिवा!” ” नमस्ते आँटी, थैंक्यू!”

मैं चलती हूँ, “मैडम अवस्थी”, अब तो आप सब जाने की तैयारी करो।

“जी, मैडम शर्मा।”

माँ, वो “प्रशांत” और “विशाल”, दोनों से मेरी बात हुई। दोनों कल सुबह 9 बजे घर से निकलेंगे। पापा, को बता देना, टैक्सी वाले को भी टाइम बताना है।

हाँ, मैं बोल देती हूँ।

“शिवा”:- एक शर्मिला, सिंपल सा लड़का, जिसका एडमिशन जालंधर के इंजीनियरिंग कॉलेज में हुआ है। अपनी इसी शर्माने, की आदत के कारण, ना वो ज्यादा कोई पार्टी/ फंक्शन अटेंड करता और ना ही अपने लिंक्स बना पाता। किसी दोस्त या रिश्तेदार के घर, रात को रहने के लिए, “वो कब गया हो, उसे खुद ही याद नहीं होगा!” क्योंकि, “उसे दूसरी जगह जाकर अपने घर और माँ की बहुत याद आती।” सिंपल शब्दों में कहें तो शिवा बहुत ही इमोशनल टाइप का लड़का है। पढ़ाई में एवरेज और खेल कूद में पीछे।
लेकिन हाँ, गाने सुनने और गाना गाने का बहुत शौकीन है। बचपन से ही शिवा के रिश्तेदार, शिवा की आवाज़ की बहुत तारीफ करते।

“प्रशांत”:- पढ़ाई में तेज़। खेल में भी तेज़। लेकिन “शिवा” के सामने सिर्फ इसलिए अपनी स्मार्टनेस नहीं दिखाता,क्योंकि प्रशांत का एडमिशन, शिवा के पापा की एप्रोच से ही हुआ है।

“दरअसल, शिवा के पापा, और प्रशांत के पापा, दोनों एक ही बैंक में काम करते हैं। शिवा के पापा, यानी “मिस्टर अवस्थी”, अपने काम के चलते, अफसरों के बेहद भरोसेमंद और करीबी हैं। इसी कारण से उनके लिंक्स भी अच्छे-खासे बने हुए हैं।”

“विशाल”:- अपने आप को स्मार्ट और इंटेलीजेंट समझने वाला। हालाँकि, पढ़ाई में उतना तेज़ नहीं। बाकी, जो लिंक “प्रशांत के पापा” और “शिवा के पापा” का आपस में बताया। वही, लिंक विशाल से भी जुड़ा हुआ है। जी हाँ, शिवा, प्रशांत और विशाल के पापा, तीनों एक ही बैंक में काम करते हैं। विशाल का एडमिशन भी, शिवा के कहने पर ही, शिवा के पापा ने, एक ही ट्रेड में करवाया है, ताकि शिवा को उसका साथ रहे।

यह तो हो गई सभी की छोटी सी पहचान। आओ, “चलें अब जालंधर शहर।” और देखें, “क्या कहता है शिवा अपने कॉलेज को देखकर।”

कॉलेज देखकर शिवा ने मन ही मन कहा, “ओह माय गॉड!” “इतना बड़ा कॉलेज!” सच में मज़ा आएगा यहाँ रहने और पढ़ने का। लेकिन, “जब घरवाले बापिस जाएँगे मुझे हॉस्टल में छोड़कर, “तो कहीं याद तो नहीं आएगी उनकी मुझे!”
नहीं आती यार, मैं ध्यान ही नहीं दूँगा, नया कॉलेज और नई जिंदगी बस, ज्यादा सोच-विचार कुछ नहीं।”

“शिवा की माँ”: बहुत अच्छा कॉलेज है शिवा यह तो। काश! मुझे भी ऐसे कॉलेज में पढ़ने का मौका मिलता। खैर, तो अब चलें घर “मिस्टर अवस्थी?”
हाँ हाँ, चलो चलते हैं, नहीं तो देर हो जाएगी घर पहुँचने में।

और शिवा से मिलकर, उसके माँ-बाप, बापिस घर के लिए रवाना हो गए।

शिवा, उन्हें छोड़ने गेट तक आया और जब तक गाड़ी उसकी आँखों से ओझल नहीं हो गयी, तब तक देखता रहा।

जो शिवा अपने घर के पास भी, किसी दोस्त या रिश्तेदार के यहाँ, एक रात तक रहने के लिए घबराता था; आज वो घर से बहुत दूर अपनी पहली रात काटेगा और नया जीवन शुरू करेगा……………………………..

चलो शिवा, कमरे में थोड़ा आराम कर लें, फिर शाम को कॉलेज देखने चलेंगे! आखिर देखें तो सही, कहाँ-कहाँ क्या है, हमारे कॉलेज के कैंपस में: “प्रशांत ने शिवा से कहा!”

“सब कुछ नया-नया और इतना अच्छा माहौल देख कर, शिवा बहुत अच्छा महसूस करने लगा! कभी बालकॉनी से अपना कॉलेज देखकर खुश होता, और कभी हॉस्टल देखकर खुश होता। आज तक, ऐसे माहौल को शिवा ने कभी महसूस नहीं किया, इसलिए यह सब देखकर, वह मन ही मन बहुत अच्छा फ़ील करने लगा और अपने आप से कहने लगा: यार शिवा, “कितना अच्छा कॉलेज और होस्टल है ना?” पूरी होटल वाली फ़ीलिंग आ रही है यार, सच में!

शिवा खुद से बातें कर ही रहा था कि तभी विशाल भी बालकॉनी में आ पहुँचा। हाँजी, जनाब! “क्या सोच रहे हो यहाँ खड़े होकर?”

शिवा ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, अरे! “नहीं वैसा कुछ नहीं, बस बाहर का नज़ारा देख रहा था।”

तभी विशाल ने कहा, “तेरे पापा का फ़ोन आ रहा है, बात कर ले जाकर।”

ओह! मैं फ़ोन करना ही भूल गया उन्हें। क्या वो पहुँच गए हैं घर?

हाँ, पहुँच गए हैं: “विशाल ने कहा।”

शिवा अपने कमरे में गया और घर फ़ोन करने लगा।

“हाँ, पापा कैसे हो? कब पहुँचे घर? माँ कैसी है?”

शिवा के पापा: “बस, करीब आधा घण्टा हो गया और हम सब ठीक हैं। तुम कैसा फील कर रहे हो, यह बताओ?” (शिवा के पापा ने हँसते हुए पूछा)

शिवा: “बहुत अच्छा पापा, बहुत ही अच्छा। बस जल्दी पढ़ाई पूरी हो और कुछ बन जाऊँ, यही सपना है अब तो।”

शिवा के पापा: “बहुत अच्छा बेटा! लो माँ से बात कर लो।”

शिवा की माँ: क्या कर रहा है? “खाना खाया?”

शिवा: जी, बस अभी जाना है डिनर करने।

शिवा की माँ: “चल ठीक है, ख्याल रखना अपना। अच्छे से पढ़ाई करना और यहाँ की कोई सोच मत रखना अपने दिमाग में, समझ गया ना?”

शिवा: जी, “सब समझ गया। आप सब अपना ध्यान रखना बस, बाई-बाई!” यह कह कर शिवा ने फ़ोन काट दिया। वह इतना खुश था कि उसे और कुछ भी ध्यान नहीं आ रहा था।

थोड़ी देर बाद, विशाल, प्रशांत और शिवा, तीनों डिनर करने के लिए मेस (mess) पहुँचे और खाना खाकर अपने कमरे में आराम करने चले गए।

अगले दिन, सुबह जल्दी उठकर, पूजा बगैरा करके, शिवा कॉलेज के लिए सबसे पहले तैयार होकर बैठ गया।
फिर ठीक 9:00 बजे, ब्रेकफास्ट करके, तीनों कॉलेज चले गए।

“विशाल और शिवा का एक ही ट्रेड होने के कारण दोनों साथ-साथ रहते।” कॉलेज में नए-नए दोस्त बने और टीचर्स के साथ भी बहुत अच्छा अनुभव रहा!

धीरे-धीरे समय बीतता गया और शिवा, खुद में कई अच्छे बदलाव देखकर बहुत खुश रहने लगा। अपनी क्लास में बहुत अच्छा करने लगा। रोज़ पढ़ाई का नियम बनाकर पढ़ने लगा। विशाल को पढ़ाई में कुछ दिक्कत आती, तो शिवा से समझ लिया करता।

“शिवा” अपनी पढ़ाई और हर काम की रूटीन से बहुत खुश रहने लगा। इससे पहले शिवा ने कभी “रूटीन” को अपनी ज़िंदगी में इतना फॉलो नहीं किया था। यह सब कुछ उनके लिए नया था, इसलिए वह बेहद खुश था।

रात को पढ़ने के बाद, जब प्रशांत और विशाल सो जाते, तो शिवा, हैडफ़ोन लगाकर गाने सुनता रहता और धीरे-धीरे गुनगुनाता रहता।

अब तो होस्टल में भी कई दोस्त, शिवा की आवाज़ के दीवाने होने लगे थे। हालाँकि, विशाल और प्रशांत ने शिवा को कभी भी गाना गाने के लिए प्रेरित नहीं किया।

एक दिन, कॉलेज में फंक्शन रखा गया। उन सभी दोस्तों ने (जो शिवा को गाने के लिए प्रेरित करते) शिवा से कहा: “यार, तू पार्टिसिपेट कर और गाना गा, तेरी आवाज़ बहुत अच्छी है।”

लेकिन, वही अपने शर्मीले स्वभाव के कारण,”शिवा ने घबराकर पार्टिसिपेट करने से मना कर दिया और होस्टल के ही दूसरे लड़के ने पार्टिसिपेट लेकर, अपने आप को साबित कर दिखाया। सारा ऑडिटोरियम तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा और शिवा वहाँ से उठ कर अपने कमरे में आ गया।”

यह सब महसूस करके, शिवा, अपने आप से कहने लगा, “क्या बकवास गाया उसने और हीरो बन गया।” पर यार शिवा, “तू इतना डरता क्यों हो? भीड़ का सामना करने से घबराता क्यों है? माना तेरी पर्सनालिटी उतनी अच्छी नहीं है लेकिन, गाता तो तू अच्छा है ना?”

खैर, चल छोड़ यार। उसको देख, कितना अमीर है, उसके पास सब कुछ है। खुद का माइक, खुद का पियानो। उसने भी अच्छा गाया बस, अब ज्यादा मत सोच।

तभी विशाल, कुछ सामान लेने के लिए कमरे में आ पहुँचा और शिवा को अकेला बैठे देखकर पूछने लगा, “तू यहाँ क्या कर रहा? फंक्शन बीच में छोड़ कर क्यों उठ आया?”

शिवा: बस, ऐसे ही यार, सर दुःख रहा था, इसलिए।

विशाल: चल ठीक है। यह कहकर, विशाल चला गया और फंक्शन में जाकर खूब मस्ती करने लगा।

शिवा, अकेले होस्टल में, यह सोच कर, कि मैं ऐसा क्यों हूँ? क्यों मैं भीड़ से डरता हूँ? क्यों घबराता हूँ? मेरी पर्सनालिटी अच्छी क्यों नहीं है? क्यों मैं सभी के साथ ज्यादा घुल-मिल नहीं पाता?
वह अपने ही स्वभाव के बारे में सोच-सोच कर अकेला बैठा परेशान हुए जा रहा था।

“शिवा उस समय शायद एक साथ ढूंढ रहा था, जो उसके ऐसे समय पर उसके साथ रहे और उसके दर्द को समझे। उसके साथ अपनापन दिखाए और ऐसे विचारों के चक्र से उसे छुटकारा दिलाने में उसकी मदद करे। लेकिन, शायद ऐसा दोस्त, एक ऐसा साथ, उसके पास नहीं था।”

“यही कारण था, जो शिवा अकेले ही बातें करता रहता और कई तरह के विचारों से घिरा रहता।”

शाम को सभी फंक्शन से बापिस होस्टल आ गए। विशाल और प्रशांत भी कमरे में बैठे फंक्शन की ही बातें करने लगे। शिवा, को पता नहीं क्यों, पर फंक्शन के बारे में कुछ भी याद करना, बहुत बुरा लग रहा था। इसलिए वह दूसरे कमरे में पढ़ने चला गया और ना तो विशाल ने और ना ही प्रशांत ने, उसके वहाँ से जाने का कारण पूछा।

जहाँ एक तरफ विशाल और प्रशांत के कई दोस्त बन चुके थे। वहीं, शिवा के सीमित से दोस्त थे।

लेकिन, ऐसा नहीं है, कि शिवा हर समय अकेला रहता या कोई भी एक्टिविटी नहीं करता। वह कुछ खास दोस्तों के साथ रहना पसंद करता और दोस्तों के साथ घूमने-फिरने का भी आनंद लिया करता। लेकिन, कोई मज़ाक से भी उसके साथ कुछ ऐसा बर्ताव कर दे, तो शिवा का मूड एकदम चेंज हो जाता और विचारों के इर्द-गिर्द घिरने लग जाता।

एक दिन कॉलेज में “क्रिकेट” में सिलेक्शन के लिए ट्रायल हुए। शिवा को पता था कि उसका एक दोस्त “आकाश” क्रिकेट अच्छा खेलता है। वह तुरन्त भाग कर आकाश के पास गया और आकाश को ट्रायल देने के लिए ज़ोर करने लगा। पहले तो आकाश ने मना किया; फिर शिवा, ने उसके साथ अपनापन जताते हुए उसे मोटीवेट किया और उसे ट्रायल देने के लिए तैयार किया।

शिवा ने अपने आप से कहा कि, “अगर आकाश का सिलेक्शन हो जाए तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा और आकाश के दिल में भी मेरे प्रति एक सगे भाई जैसा अपनापन जगेगा।”

आकाश ने भी बोलिंग में अपना हाथ आज़माया और उसका सिलेक्शन भी हो गया। सभी आकाश को मुबारक देने लगे और आकाश भी सभी को थैंक्स कहने लगा। शिवा, ने भी मुबारक दी लेकिन, आकाश ने भी शिवा को थैंक्स के अलावा और ज्यादा कुछ नहीं कहा।

शिवा के मन में वहीं खड़े-खड़े फिर विचार आने लगे कि, “मैंने कितना अपनापन जताकर इसकी सिलेक्शन के बारे में सोचा और इसने सिर्फ़ थैंक्स के अलावा और कोई अपनापन नहीं जताया!” कम से कम गले लगाकर थैंक्स तो बोलता! यह सोच कर, शिवा फिर उदास हो गया।

आकाश भी बाकी दोस्तों के साथ घिरा हुआ था, “हर कोई उसे यह जताने में लगा था कि हमने तो पहले ही सिलेक्शन में तेरा नाम सोचा हुआ था।”

“जैसे-जैसे समय बीता, शिवा, उन सबसे अपने आप को अलग महसूस करने लगा। हर छोटी घटना को, वह बहुत गहराई से सोचने लगाता। खुद को अकेला महसूस करने लगता। हालाँकि, बातचीत वो सभी से करता, लेकिन अंदर ही अंदर वह यह समझ नहीं पाता कि आखिर मैं खुद को बदलूँ, तो कैसे?”

और एक दिन वह भी आया, जब, उसे घर की याद आने लगी। और याद कोई नॉर्मल वाली नहीं, घुटन वाली याद।

“अगर आपको याद होगा, तो शुरू में ही शिवा को यह डर था कि, “यहाँ कॉलेज में इतनी दूर, कहीं उसे घर और माँ की याद तो नहीं आया करेगी?” और हुआ भी वही।”

अब तो विचारों को संभाल पाना, मानो उसके बस से बाहर था। उसे घर की बहुत याद आ रही, यह बात, ना तो वो घर में बता सकता और ना दोस्तों को बता सकता। और एक दिन उसने छुट्टी लेकर, घर जाने का फैसला किया।

शिवा को घर देखकर, घरवाले बहुत हैरान हुए और इस तरह, “अचानक घर आने का कारण पूछने लगे………………!”

शिवा, “तुम अचानक घर कैसे!” सब ठीक तो है? (शिवा के घरवालों ने आश्चर्यचकित होकर पूछा)

जी, “सब ठीक है।” वो……. कॉलेज में क्लासेज कम ही लग रही हैं, तो सोचा घर जा आता हूँ, बस चला आया।

यह सुन शिवा के पापा ने पूछा, “विशाल भी आया या नहीं?”

शिवा: नहीं पापा, उसने मना किया आने को। बोलता मुझे काम हैं यहाँ, तू जा आ घर।

“शिवा ने यहाँ सच छुपा कर, अपनी ज़िंदगी की पहली बड़ी गलती कर दी थी।”

“वह, यह नहीं जानता था कि उसका झूठ बोलना और सच छिपाना, आने वाले समय में उसे किन-किन परिस्थितियों से सामना करवाने वाला है।”

खैर, शिवा भी फ्रेश होकर, खाना बगैरा खा कर, अपने कमरे में आराम करने चला गया। अकेले बैठे-बैठे, फिर दिमाग में तरह-तरह के विचारों से घिरने लगा।

शिवा अपने आप से बातें करना शुरू हो गया और कहने लगा; “सच में यार!” “यहाँ कमरे में मुझे कितना सुकून मिल रहा है और वहाँ होस्टल में कितनी घुटन होती है मुझे।” अब हफ्ता भर बापिस नहीं जाऊँगा कॉलेज, सुकून से यहीं रहूँगा! यही सोचते-सोचते उसकी आंख भी लग गई।

सुबह, सभी घरवाले इकठ्ठे बैठे, शिवा से उसके कॉलेज के बारे में पूछने लगे।

शिवा की माँ: “बता फिर शिवा कुछ अपने कॉलेज के बारे में! पढ़ाई कैसी चली है? एन्जॉय तो खूब करता होगा तू वहाँ ना?” काश मुझे भी वैसे कॉलेज में पढ़ने का मौका मिला होता! तभी शिवा के पापा, शिवा की माँ को बीच में टोकते हुए मजाकिया अंदाज में बोल पड़े, ओ हो! “तुमने फिर से वही रट लगाना शुरू कर दी। मुझे पता है तुम कितना की पढ़ती वहां भी।” खूब हंसी मजाक हुआ और शिवा के पापा ने फिर से कॉलेज में पढ़ाई और रहन-सहन के बारे में शिवा से पूछना चाहा। शिवा ने ज्यादा कुछ ना कहकर, बस इतना कहा कि, “हाँ, पढ़ाई और कॉलेज का माहौल सब ठीक है।” इतना कहकर शिवा, अपने घर के बाहर की खूबसूरती निहारने चला गया।

शिवा के घर से पहाड़ बिल्कुल नज़दीक दिखाई देने के चलते, वह अक्सर इनकी खूबसूरती को निहारता रहता। निहारते-निहारते वह फिर विचारों में खोने लगा और खुद से कहने लगा, वाह! “यार सच में, असली दुनिया यहीं है।” मैं क्यों बाहर चला गया पढ़ने को? मेरी मति मारी गई थी जो इतनी दूर एडमिशन के लिए हाँ कर दी थी। काश, “यहीं एडमिशन लेकर पढ़ रहा होता, तो कितना अच्छा होता!” लेकिन, “आस-पास कोई इंजीनियरिंग कॉलेज ना होने के चलते, लोग क्या कहते कि क्या नार्मल ग्रेजुएशन कर रहा है? आजकल सभी इंजीनियरिंग या कोई और प्रोफेशनल कोर्स करते हैं और तू??? पर यार, लोगों को क्यों देखना था? सिंपल ग्रेजुएशन करके भी तो कुछ बना जा सकता था। सारी उम्र यहीं घर के पास रहकर काम भी करना था कुछ, कितना अच्छा रहता ना? लेकिन यार शिवा, “अब कुछ नहीं हो सकता। अब तो बस दुआ कर, यह चार साल जैसे-तैसे करके निकल जाएं बस।”

“इन्हीं सवाल-जवाबों के घेरों से शिवा, इतना घिर चुका था, कि अब वो एक बंधी हुई ज़िंदगी जीने को मज़बूर हो चुका था।”

ऐसे ही विचारों में डूबे हुए शिवा के कब पाँच दिन घर में गुज़र गए, उसे पता ही नहीं चला। हर दिन सोच में डूबे रहने के कारण, ना वो कहीं किसी से मिलने गया और ना ही घर में खुशी से, अपनी, छुट्टियाँ काट पाया। दो दिन के बाद उसे बापिस कॉलेज जाना था और अब बाकी विचारों को छोड़, नए विचारों के इर्द-गिर्द उसका दिमाग घूमने लगा और खुद से कहने लगा, “यार, परसों मैं फिर उस नर्क में जाऊँगा!” मुझे नहीं जाना है वहाँ पढ़ने और रहने, लेकिन यह बात मैं किसे बताऊँ और कैसे बताऊँ…..??

यह सोच-सोच कर शिवा की घबराहट बढ़ने लगी और जब जाने को सिर्फ़ एक दिन रह गया; तब यह सोचकर कि, अगर मैं बापिस पढ़ने नहीं जाता हूँ तो इस पर माँ की क्या प्रतिक्रिया रहेगी? यह जानने के लिए, वह अपनी माँ के पास जाकर बैठ गया।

माँ ने कहा, “कल की तैयारी कर ले, सुबह जल्दी निकलना होगा तूने।”

शिवा (बात घुमा कर कहता हुआ): “हाँ माँ, कल फिर से आप सबसे दूर चला जाऊँगा ना।” आपको याद आएगी ना मेरी बहुत?

माँ (मुस्कुराते हुए): “अरे नहीं!” भला याद क्यों आनी? तू कौन सा हमें छोड़ कर कहीं अलग रहना चला है। और वैसे भी तू हर महीने चक्कर लगा ही तो जाता है घर का, तो याद कैसी? अच्छा, जा अब पैकिंग कर ले जाकर। तेरे लिए पकवान भी बनाने हैं सुबह के लिए।

“शिवा अपनी माँ से सीधा कुछ भी नहीं कह पाया और निराश होकर दिमाग से थका हुआ शिवा अपनी पैकिंग करने चला गया।”

रात को खाना खाकर, अपने कमरे में सोने गया तो कमरे की दीवारों और खिड़कियों को देखकर कहने लगा, “ठीक है दोस्तों, कल मैंने यहाँ नहीं होना है। काश! आप लोग भी मेरे साथ चल सकते तो मुझे अपनापन सा लगता।” ऐसी ही कुछ बातें करते-करते शिवा भारी सांसे भरते हुए सो गया और अच्छी नींद नहीं आने के कारण सुबह थोड़ी जल्दी उठ गया।

उठने के बाद, उसने फिर से अपने कमरे और बिस्तर को अच्छे से देखा और बिस्तर उठाकर अच्छे से एक कोने में रख दिया।फिर अपने कमरे से बाहर आया और दूसरे कमरे में अपने पापा को सोए हुए देखा, तो घूंट भरते हुए फिर कहने लगा, “यार, थोड़ी देर पापा के साथ सो लेता हूँ, मुझे अच्छा लगेगा और थोड़ा सुकून भी मिलेगा!”

थोड़ी देर लेटने के बाद, शिवा नहाने चला गया और तैयार हो गया। अब समय आया उसके घर से निकलने का। घर से निकलते वक्त शिवा अंदर से इतनी घुटन महसूस कर हा था कि पाँव छूने पर भी शिवा अपने माँ-बाप से सीधे नज़रें तक नहीं मिला पाया। अपने घर के गेट से बाहर होकर, भरे हुए मन से शिवा, बस यही कहे जा रहा था कि, “नहीं जाना है मुझे वहाँ, मेरा दम घुटता है…… घर की याद आती है….. पहाड़ों की याद आती है, लेकिन कहूँ तो आखिर किससे कहूँ?????”

बहरहाल, शिवा, जालंधर के लिए, अपने घर से निकल चुका था। बस के इंतज़ार में खड़े शिवा ने सूरज की ओर देखा और कहने लगा, “आज मैं यहाँ अपने घर का सूरज देख रहा हूँ, और कल ऐसा खुशनुमा सूरज नहीं देख पाऊँगा!” “पता नहीं अगली बार बापिस आऊँगा तो अपने घरवालों को भी स्वस्थ्य देख पाऊँगा, या कहीं कुछ उन्हें हो ना जाए!”

“ऐसे तरह-तरह के विचारों से घिरना, शिवा की मुश्किलों को ओर बढ़ा रहा था। और शिवा के लिए बेहतर यही होता, कि वह या तो इतनी दूर अपना एडमिशन ही नहीं करवाता या कम से कम अबकी बार जब वो घर आया था, तो अपने पेरेंट्स से खुल कर बात करता, लेकिन उसने ऐसा कुछ नहीं किया था।”

खैर, अब शिवा बस में बैठा हुआ भी घुटन महसूस किए जा रहा था। ना वो अपने सफऱ को एन्जॉय कर पा रहा था और ना ही अपना ध्यान बदल पा रहा था। शिवा, बार-बार बस की खिड़की से अपने घर की दिशा की ओर देख कर, पहाड़ियों को तब तक देखता रहा, जब तक पहाड़ियाँ पूरी तरह उसकी नज़रों से ओझल नहीं हो गई।

“शिवा, खुद के विचारों में, अपने आप को इतना कैद कर चुका था कि वह हर रास्ते, जाने-अनजाने अपने लिए एक कठिन परिस्थितियाँ खुद ही तैयार कर रहा था, जहाँ से निकल पाना शायद हर किसी के लिए इतना आसान नहीं होता।”

पूरे सफर में शिवा एक जगह बैठा रहा और छह घण्टे का सफर तय करने के बाद, बस जालंधर ‘बस स्टैंड’ पहुँची। शिवा भी बस से उतरा और उसकी नज़र साथ खड़ी हुई दूसरी बस पर पड़ी। वह दूसरी बस, शिवा के घर जा रही थी। बस का बोर्ड पढ़ने के बाद, शिवा खुद के इमोशन्स को रोक नहीं पाया और अंदर ही अंदर बहुत घुटन महसूस करने लगा। और जब तक बस वहाँ से चली नहीं गई, वह बस को ही देखता रहा।

कुछ देर बाद वह होस्टल पहुँच गया। होस्टल में कुछ लड़के खेल-कूद रहे थे, कोई पढ़ाई कर रहे थे तो कोई हँसी-मज़ाक में व्यस्त थे। लेकिन शिवा सबसे छुपता हुआ चुपचाप अपने कमरे में जा पहुँचा। हाथ-मुँह धोकर, घर से जो खाने का सामान लेकर आया था, उसे खाने लगा। जब खाना खा बैठा, तो जिस लिफाफे में शिवा की माँ ने रोटी पैक की थी, उस लिफाफे को बाहर कूड़ेदान में फैंकने चला गया। लेकिन लिफाफे को कूड़ेदान में फेंकते वक़्त शिवा, खुद से कहने लगा, “यार, यह लिफाफा मेरे घर से आया है। माँ ने कितने प्यार से इस लिफाफे में मेरे लिए खाना पैक किया था और तू इसे कूड़ेदान में फेंकने जा रहा है? मैं इसे कूड़ेदान में नहीं फेंकूँगा।” यह कहकर, वो लिफाफा बापिस अपने कमरे में ले आया और अपने बैग में रख लिया।

कुछ देर बाद, शिवा अपने बैग से सामान निकालने लगा तो उसने देखा कि माँ की कंघी उसके बैग में आ गई है। कंघी को देख कर शिवा को घर की बहुत ज्यादा याद आने लगी और गहरी सांसें भरने लगा। तभी उसने फ़ोन पकड़कर अपनी माँ को फ़ोन घुमाया और भारी मन से कहने लगा, “माँ, मेरे बैग में आपकी कंघी आ गयी है।” माँ ने मुस्कुराते हुए कहा, “कोई बात नहीं बेटा, मेरे पास कौन सा एक ही कंघी है।” लेकिन तेरी आवाज़ कुछ भारी सी क्यों लग रही है?

शिवा ने झट से जवाब देते हुए कहा, “नहीं माँ, ऐसा कुछ नहीं है………, वो सफर किया है तो थक गया हूँ, इसलिए……..।”

यह सुन शिवा की माँ ने कहा, अच्छा ठीक है बेटा, “पहले आराम कर ले, बाकी काम बाद में करना।” और हाँ, लंच तक होस्टल पहुँच गया था या लेट हो गया था?

नहीं माँ, खाना तो घर का ही खाया मैंने। होस्टल तो मैं लेट पहुँचा था और लंच टाइम ओवर हो चुका था। लेकिन आप बताओ ना, आप क्या कर रहे हो? पापा आ गए बैंक से या नहीं? मौसम कैसा है? आपने क्या खाया?

ऐसे सवाल सुनकर शिवा की माँ थोड़ी देर के लिए, सोच में पड़ गई……., “यह इतना कुछ क्या पूछ रहा है? अभी सुबह ही तो घर से गया है, फिर इतने सवाल…………???

“माँ!” कहाँ गए, बात क्यों नहीं कर रहे…….?

माँ (थोड़ा मुस्कुराते हुए): हाँ हाँ… बस ऐसे ही पानी पीने लगी थी, तो थोड़ी देर के लिए फ़ोन होल्ड पर रख दिया था। चल अब तू आराम कर, बाकी बातें बाद में करेंगे।

ठीक है माँ, आप ख्याल रखना और पापा का भी ख्याल रखना। यह कह कर शिवा ने फोन काट दिया।

फ़ोन रखने के बाद, शिवा की माँ भी सोच में पड़ गयी कि और कहने लगी, “शिवा के बात करने का तरीका, मुझे कुछ ठीक नहीं लगा।” अजीब सी बातें कर रहा था आज और इतने सवाल भी कर रहा था….! यह सोचते हुए, शिवा की माँ ने शिवा के पापा को फोन लगाया और सारी बात बताई। इस पर शिवा के पापा ने हँसते हुए कहा, अरे! “इतने दिनों के बाद घर से गया है तो हल्की-फुल्की याद आ रही होगी, जो सबको आती है, इसलिये ऐसी बातें कर रहा होगा। शाम तक, जब अपने दोस्तों के साथ खेल-कूद में व्यस्त हो जाएगा तो सब भूल जाएगा। तुम चिंता मत करो।”

वहाँ शिवा, यह सोच कर कि, “घरवालों को कहीं बेकार में चिंता ना हो, इसलिए वह कुछ भी अपने घरवालों से बताने में संकोच करता रहता और दूसरी तरफ़ वह घरवालों से अपनी व्यथा बताने में डरता भी था। इसी असमंजस के बीच, ना वह खुश रह पाता और ना किसी से अपना दुःख बाँट पाता।”

शिवा अकेला कमरे में बैठा था और कुछ देर बाद विशाल और प्रशांत भी कमरे में आए और शिवा को देख कर मुस्कुराते हुए पूछा: “अरे भाई! तू कब आया?” जा आया घर? कैसा रहा घर का टूर?

शिवा ने जवाब दिया, “हाँ भाई, जा आया घर और बाकी सब ठीक रहा।” तुम बताओ कॉलेज का नया ताज़ा कुछ।

विशाल बोला, बस यार! क्लासेस कुछ खास नहीं लग रही हैं। लेकिन कुछ समय में फर्स्ट सेमेस्टर के एग्जाम शुरू होने वाले हैं, बाकी तो कुछ खास नहीं है।

बातें करते-करते शाम हो गयी और सभी डिनर करने चले गए। शिवा चुपचाप ही था। विशाल ने पूछा क्या हुआ भाई? तुम इतने चुप-चुप क्यों हो आज? कोई परेशानी है क्या?

शिवा ने उससे पूछा, यार विशाल! तू भी जब घर से आता है तो क्या, तुझे भी घर की याद आती है?

विशाल ने हँसते हुए उत्तर दिया, हाँ वो तो आती ही है लेकिन सिर्फ़ आधा-एक दिन, ज्यादा नहीं और ज्यादा याद करके करना भी क्या, आखिर चार साल तो अब यहाँ गुज़ारने ही हैं, फिर कितनी की याद करनी। हाँ, अगर कभी ज्यादा आए तो छत पर जाकर …………. समझ गया ना?

क्या? तू रोता है छत पर जाकर (शिवा ने पूछा)”???

विशाल: हाँ यार, हो जाता है कभी-कभी लेकिन रोने के बाद मन कुछ हलका हो जाता है और कुछ टाइम बाद अच्छा फ़ील करने लग पड़ता हूँ बस और क्या…..! ज्यादा नहीं सोचते यार, जितना सोचेगा उतना उलझेगा, चल खाना खा बिना टेंशन के।

इतना कह कर, दोनों डिनर करके बापिस कमरे में आ गए और कुछ देर बाद विशाल और प्रशांत तो सो गए, लेकिन शिवा को नींद नहीं आ रही थी। वह यही सोचे जा रहा था कि मैं भी रो लेता हूँ, क्या पता मेरा मन भी हलका हो जाए! लेकिन बहुत कोशिश के बाद भी शिवा को रोना नहीं आया और सोचते-सोचते उसकी आँख लग गई।

सुबह, जैसे ही शिवा की आँख खुली, वह एक दम से उठा और बिस्तर पर बैठ गया। अपने आप को होस्टल में देखकर बहुत घुटन महसूस करने लगा। सांस भी भारी होने लगी। फिर थोड़ा संभलने के बाद वह नहाने चला गया। लेकिन ध्यान उसका घर की ओर ही था। उसे सिर्फ घर ही जाना था। वह यहाँ रहना ही नहीं चाहता था।

कुछ देर में वह तैयार होकर कॉलेज भी गया, लेकिन वहाँ भी उसका ध्यान पढ़ाई में कम और घर की तरफ ज्यादा घूम रहा था।

“क्लास में बैठे-बैठे भी वह अपने मोबाइल के कैलेंडर से, आने वाली छुट्टियाँ नोट करने लगा कि कब छुट्टियाँ आएँगी और कब मैं घर जाऊँगा।” अरे वाह! सिर्फ़ बीस दिनों के बाद दो छुट्टियाँ आ रही हैं। दो छुट्टियाँ मैं अपनी लूँगा और दो दिन बीमारी का बहाना लगाकर, पूरे हफ्ते की छुट्टियाँ बनाकर घर जाऊँगा, यस!

इतना दिमाग घुमाने के बाद शिवा जब होस्टल आया तो उसने अपने कमरे में एक पेज चिपका दिया, जिस पर बीस तक गिनती लिख ली और जैसे-जैसे एक-एक दिन कटता, वह पेन से एक-एक दिन कट करता चलता। शिवा की ऐसी हरकतें देख, विशाल और प्रशांत भी हँसा करते थे, लेकिन शिवा इतनी आसानी से कहाँ सुधरने वाला था?

या यूँ कहें कि, शिवा की इन हरकतों को देखकर ऐसा कहीं नहीं लग रहा था कि वह यहाँ पढ़ने आया हो। लेकिन, ऐसे कुछ तरीके अपना कर अब वह थोड़ा खुश रहने लगा। और पढ़ाई के बजाए, अब अपना ध्यान, आने वाले बीस दिनों में ही फोकस करने लगा।

जैसे-तैसे उसने दो सप्ताह काट लिए और अपने आप से बेहद हर्ष के साथ कहने लगा, “अब तो मैं पाँच दिनों बाद अपने घर जाऊँगा।” मैं आ रहा हूँ मेरे घर, मैं आ रहा हूँ।

हालाँकि बीच-बीच में उसे यह ख्याल भी आता कि यार, “इतनी जल्दी घर जाऊँगा तो घरवाले गुस्सा करेंगे और ठीक नहीं लगेगा। ऊपर से बस का किराया भी कितना लगेगा।” लेकिन अचानक उसका दिमाग फिर बदल जाता और आसानी से सकारात्मकता को छोड़, नकारात्मकता को अपने ऊपर हावी होने, दे दिया करता।

एक दिन शिवा, रोज़ की तरह अपने कॉलेज गया और उस दिन शिवा बहुत खुश था, क्योंकि आज उसने अपनी लीव सैंक्शन करवानी थी। लेकिन कॉलेज पहुँच कर शिवा को उस समय अचानक धक्का लगा, जब उसे पता चला कि पन्द्रह दिनों के बाद फर्स्ट सेमेस्टर के एग्जाम शुरू हो रहे हैं। यह सुन, शिवा फिर से सोच-विचार में डूब गया और कॉलेज से बंक करके, तुरन्त भाग कर अपने होस्टल आ गया। बहुत सोचने के बाद, उसने फैसला किया कि अब प्रोग्राम बनाया है मैंने घर जाने का, तो बस जाऊँगा ही, चाहे कुछ भी हो।

आसानी से अगर छुट्टी नहीं मिली, तो भी कोई तरकीब लगाकर छुट्टी तो मैं लेकर ही रहूँगा और घर भी ज़रूर जाकर रहूँगा….।

छुट्टी की आस लगाए शिवा ने अगले दिन कॉलेज पहुँच कर, सबसे पहले एक एप्लीकेशन लिखी, और छुट्टी की परमिशन लेने, अपने “हेड ऑफ डीपार्टमेंट” के पास जा पहुँचा…………।

“हेड ऑफ डीपार्टमेंट” ने कॉलेज में आने वाले एग्जामस का हवाला देते हए छुट्टी देने से साफ इनकार कर दिया।

इस पर शिवा ने बताया कि वह खुद को बीमार महसूस कर रहा है और घर जाना बेहद ज़रूरी है। यह सुन “विभागाध्यक्ष” ने शिवा को, होस्टल में ही डॉक्टर से चेकअप करवाने की सलाह दी, जिस पर शिवा ने कड़ा एतराज जताया और सिर्फ घर जाकर ही अपना चेकअप करवाने पर ज़ोर देने लगा। विभागाध्यक्ष ने शिवा को उसके घर फोन मिलाने को कहा और घरवालों से बात करवाने को कहा।
यह सुन शिवा थोड़ा घबराया और कहने लगा, “सर, इस वक़्त घर में कोई नहीं होता और मोबाइल खराब है पापा का तो बात नहीं हो सकती।”

विभागाध्यक्ष कुछ-कुछ समझ पा रहे थे कि शिवा झूठ बोल रहा है। उन्होंने कहा, जब तक तुम्हारे पापा का फोन नहीं आ जाता, तब तक तुम्हें छुट्टी नहीं मिल सकती।
यह सुन, शिवा बहुत मायूस हुआ और कॉलेज के बाद होस्टल पहुँच कर गहरी सोच में डूब गया……………।

“क्या यार, कल मैंने घर जाना था, कितना अच्छा फील करना था। लेकिन सर ने सारा मूड ऑफ कर दिया।” अब घरवालों को कैसे समझाऊँ? कैसे बोलूँ कि आप यहाँ फोन कर दो? फिर कहीं विशाल से पता लग गया कि पेपर लगने वाले हैं, तब तो मुझे बहुत डांट पड़ेगी। “क्या करूँ यार! क्या करूँ!”

तभी कमरे में विशाल, अपना कॉलेज बैग लेने आया। शिवा ने पूछा, “भाई इस वक़्त बैग लेकर कहाँ जा रहा?”

विशाल ने कहा, “लाइब्रेरी जा रहा यार, एग्जाम नज़दीक हैं तो आज से तैयारी शुरू करूँगा, नहीं तो घरवालों ने जो इतने पैसे लगाए हैं मुझपर, सब व्यर्थ हो जाएँगे।” इतना कह कर विशाल वहाँ से चला गया।

विशाल के जाने के बाद, शिवा सोचने लगा, “यार पैसे तो मेरे घरवालों ने भी बहुत लगाए हैं, फिर मुझे ऐसी सोच क्यों नहीं आती!” “मैं क्यों यहाँ घुटन महसूस करता रहता हूँ? मुझे क्यों घर की याद आती रहती है? और आखिर कब तक मैं यूहीं जीता रहूँगा?”

नहीं शिवा….., “तुझे भी अपने घरवालों की फिक्र करनी है। तुझे बी एक दिन बड़ा आदमी बनना है। तुझे भी पढ़ना है, सिर्फ पढ़ना है!”

“बस इतनी सी सकारात्मक सोच की बात थी, कि शिवा ने अपना सारा ध्यान पढ़ाई में लगाना शुरू कर दिया! वह देर रात तक पढ़ाई करता और एक नॉर्मल ज़िंदगी जीकर खुश भी था। घर में रोज़ फोन करता, बातें करता लेकिन यादों को अब अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया करता…..!”

कुछ दिन बीत जाने के बाद, एग्जाम भी शुरू हो गए। शिवा के सारे पेपर अच्छे हुए। अब कॉलेज में कुछ दिनों की छुट्टियाँ घोषित हो गयी। होस्टल के सभी बच्चे अपने-अपने घरों को जाने के लिए बहुत उत्सुक दिख रहे थे।

शिवा उन सभी बच्चों को देख कर सोचने लगा, “देख शिवा, यह होती है असली खुशी घर जाने की। और तू? तू, तो जब दिल करता, तब उठ कर चल पड़ता है।” तभी “विशाल और प्रशांत” भी वहाँ आए और शिवा से कहने लगे, भाई! “पैकिंग नहीं करनी?”

शिवा ने उत्तर दिया, नहीं भाई। “मैं कुछ दिनों के बाद जाऊँगा घर।”

यह सुन दोनों हैरान हो गए, “क्यों भाई? यहाँ होस्टल में अकेले क्या करेगा?”

शिवा: डिप्लोमा वाले स्टूडेंट्स हैं तो सही यहाँ होस्टल में। मैं अकेला थोड़े रहूँगा?

विशाल ने कहा: चल तेरी मर्ज़ी भाई, “मैं तो निकल रहा हूँ घर के लिए, बहुत दिन हो गए घर गए हुए।”

प्रशांत ने भी कहा, हाँ भाई, “मैं अब एक पल भी नहीं रह सकता होस्टल में।” यह कहकर विशाल और प्रशांत, दोनों अपना सामान लेकर चले गए………।

रास्ते में प्रशांत, विशाल से कहने लगा, “यार, आज शिवा घर नहीं चला।” क्या चक्कर होगा?

विशाल: हाँ यार, मैं भी यही सोच रहा। जो इंसान स्पेशल छुट्टियां लेकर घर जाया करता है, आज छुट्टियाँ पड़ने पर भी वो घर जाने से मना कर रहा है! अजीब लगता है यार सुनने में। चल चल बस आ गयी……….।

शिवा होस्टल में बहुत खुशी महसूस कर रहा था। मैगजीन्स बगैरा पढ़ कर अपना समय काट रहा था। दरअसल, शिवा भी बाकी लड़कों की तरह खुशी से घर जाना चाह रहा था। उसे अब एहसास होने लगा था कि, “घर जाने का असली मज़ा महीने में 2 बार नहीं, बल्कि 2 महीने में एक बार ही आता है।” इसी कारण वह होस्टल में रुक गया था और उसने कुछ दिन बाद घर जाने का फैसला किया था, ताकि उसे लगे कि घर जाने की जल्दी से अब उसने छुटकारा पा लिया है।”

रात को डिनर टाइम पर मेस (mess) के “हेल्पर कुक” ने शिवा से पूछा, भैया जी, आप नहीं गए घर क्या? आपके साथ वाले तो सभी चला गया है घर ना?

हाँ, लेकिन मैं नहीं गया! (शिवा ने कहा……….)

हेल्पर कुक और शिवा की आपस में अच्छी दोस्ती थी। इसी चलते हेल्पर कुक और शिवा घण्टों बातें करते रहे। और शिवा ने उस रात, हेल्पर कुक से अपनी सारी बातें शेयर की। यह सुन हेल्पर बोला, “भैया हम तो बहुत छोटे से इंसान हैं। रसोई में हाथ बंटाने का काम करते हैं और कभी-कभी खाना बगैरा भी बना लेते हैं। हमसे ज्यादा तो आपको समझ होनी चाहिए। हम भी तो इतनी दूर से यहाँ रहकर, कमा कर, घर चला रहे हैं। हम तो घर भी साल में एक ही बार जाया करते हैं। एक सफर में पता है आपको, पूरे 1200 रुपये खर्च हो जाते हैं! इसलिए साल में बस एक ही बार जाते हैं। लेकिन आप तो आते-जाते रहते हैं भैया जी, फिर आप यहाँ, इतना उदास क्यों रहा करते हैं? आप उदास मत रहा करें। आपके घरवालों को तो आपसे बहुत अच्छी-अच्छी उम्मीदें होंगी। और आपमें तो भैया, कोई बुरी आदत भी नहीं है। बाकी लड़के तो छी-छी, खा-पीकर, गन्दी गालियां देते फिरते हैं। लेकिन भगवान कृपा से आप बहुत अच्छे हैं भैया जी!”

शिवा बड़ी गौर से उस हेल्पर कुक, की बातें सुन रहा था। और इस बात को भी समझ रहा था, कि यह भी तो इंसान हैं! इनका भी तो घर है! अगर यह घर में रहेंगे तो खाएंगे क्या……….? और अगर यह बार-बार घर आते-जाते रहे, तो इन्हें काम पर भी कोई नहीं रखेगा?

खैर, शिवा को उस हेल्पर कुक के साथ बिताए पलों में बहुत सुकून मिला और कुछ सीखने को भी मिला।

“कुछ दिन होस्टल में रह कर, शिवा घर के लिए निकल पड़ा। और वह यह सोच कर बहुत खुश था कि, अब उसे भी औरों की तरह घर जाने की कोई जल्दी नहीं रहती और वह होस्टल में भी खुशी से रह सकता है।”

शिवा घर पहुँचा और फ्रेश होकर अपने पेरेंट्स के साथ चाय पीने बैठ गया। पेरेंट्स भी शिवा में कुछ बदलाव देख कर काफी खुश नजर आ रहे थे! शिवा ने अपने पेरेंट्स के साथ होस्टल की बातें शेयर की और खाना खा कर सोने चला गया।

“आज शिवा का दिमाग इधर-उधर नहीं चल रहा था। आज शिवा, खुद को विचारों से आज़ाद महसूस कर रहा था। मानो, शिवा की लाइफ बिल्कुल बदल चुकी हो। छुट्टियों में शिवा दोस्तों से मिलने भी गया और अपनी नानी के घर भी गया। खूब मस्ती भी की……….।”

कई दिन बीतने के बाद, शिवा की छुट्टियाँ अब खत्म होने को आई थी। बीच-बीच में शिवा को बापिस कॉलेज जाने के ख्याल भी आ रहे थे, “लेकिन ख्यालों में ज्यादा डूबने से खुद को रोकते हुए, वह कहीं न कहीं इस बार कामयाब भी हो पा रहा था।”

शिवा की छुट्टियाँ खत्म हुईं और सोमवार से कॉलेज शुरू होने थे। चूंकि विशाल, प्रशांत और शिवा के घर ज्यादा दूर नहीं थे, इसलिए तीनों ने रविवार को होस्टल जाने का प्रोग्राम एक साथ बनाया….।

शनिवार को शिवा ने सारी पैकिंग की और रविवार सुबह नहा-धो कर शिवा जल्दी ही तैयार हो गया। “माँ” ने रोटी खिला भी दी और रोटी पैक भी कर दी।

शिवा अपने कमरे में अपना बैग लेने आया और देखा कि “तकिया, जो सुबह उठा कर उसने एक किनारे, बिस्तर के ऊपर रखा था, वह उस ढ़ेर से नीचे गिरा हुआ था।” उसने तकिया उठा कर बापिस, उसी बिस्तर के ढ़ेर में रख दिया और अपने बिस्तर, दीवारों, दरवाजे और खिड़कियों को बाई करके चला आया। शिवा के पेरेंट्स भी उसे गेट तक छोड़ने आए और शिवा बस लेने के लिए बस स्टॉप में जा खड़ा हुआ……….।

“इस बार शिवा ने, बार-बार पीछे मुड़कर, ना तो अपने पेरेंट्स को ज्यादा देखा और ना ही अपने घर को ज्यादा देखा। मानो पुराना शिवा अब बदल चुका हो……..!”

अब आप सब सोचे रहे होंगे…….., यार! यह कैसा एन्ड हुआ कहानी का? और इसमें पश्चाताप वाली कौन सी बात थी?

???……??????

[यहाँ बता दूँ कि, कहानी तो अभी शुरू हुई है। “पश्चाताप के आँसू” आपको आगे पढ़ने को मिल जाएंगे…..!]

बस स्टॉप पर प्रशांत और विशाल, पहले से ही शिवा का इंतज़ार कर रहे थे और शिवा के पहुँचते ही तीनों बस में बैठ कर, जालंधर के लिए रवाना हो गए………….।

इस बार शिवा ने खुद से प्रण किया कि, “वह घर की यादों में डूबकर, अपने दिमाग पर ज़्यादा ज़ोर नहीं डालेगा।” और वह इस काम से, अपना ध्यान भटकाने में काफी हद्द तक कामयाब भी हो रहा था..।

क्योंकि सफ़र लंबा था, तो रास्ते में ड्राइवर ने लंच करने के लिए बस को एक ढाबे के पास रोक कर खड़ा कर दिया……….।

सवारियों में भी कोई लंच करने के लिए नीचे उतरा, तो कोई फ्रेश होने के लिए नीचे उतरा।

विशाल ने भी प्रशांत और शिवा से कहा,”चलो, हम भी उतर कर, अपने हिमाचल के ढाबे का खाना खा लेते हैं। होस्टल पहुँच कर “हिमाचल” की खुशबू वाला खाना नहीं मिलेगा!”

इतना सुनने के बाद, शिवा के अंदर फिर से, विचारों ने दस्तक देना शुरू कर दिया…..। हालाँकि, उस समय शिवा ने अपना ध्यान, दिमाग उलझाने वाले विचारों से जरूर हटा लिया और शिवा नीचे उतर कर ढाबे की ओर चल दिया।

ढाबे पर, प्रशांत ने जैसे ही दाल का स्वाद चखा, वह एक दम से बोल उठा, “वाह! क्या दाल है।” मानो हमारे घर की बनी हुई दाल हो।

तभी विशाल बोल पड़ा, “हाँ यार! खाना बहुत अच्छा है।” लेकिन अब होस्टल में जाकर वही खाना और पढ़ाई का काम…………।
विशाल ने आगे कहा, “यार! इतने दिनों बाद कॉलेज जा रहे हैं, तो घर की बहुत याद आ रही है।” कल मैं इस वक़्त अपने चाचा जी के यहाँ खाना खा रहा था और पता है तुम्हें? मैं खाना लेंटर पर जाकर खा रहा था, पहाड़ों को देखते-देखते……!!

इतने में प्रशांत ने कहा, “यार! पहाड़ों की याद मत करवा। पहाड़ों को देखकर तो ऐसा लगता है, मैं अपनी पढ़ाई भी छोड़कर पहाड़ों में रहने चला जाऊँ..!”

तभी विशाल ने शिवा से कहा, “भाई तू भी सुना दे कुछ छुट्टियों की यादें!”

यह सुनकर शिवा ने भरे मन से कहा, “मेरी कोई यादें नहीं यार। मैं छुट्टियों में सिर्फ नानी माँ के घर गया था, बाकी कोई खास यादें नहीं हैं…..।”

“शिवा नहीं चाहता था कि, वह घर की यादें करके अपने दिमाग पर ज़ोर डाले। इसलिए वह इस विषय पर विशाल और प्रशांत से भी ज्यादा डिस्कस नहीं कर रहा था। हालाँकि जिस हिसाब से विशाल और प्रशांत अपने घरों की यादों को ताज़ा करते हुए बातें किए जा रहे थे, शिवा चाह कर भी उनकी बातों को इग्नोर नहीं कर पा रहा था।”

शिवा ने जल्दी-जल्दी खाना खाया और बाहर आकर खड़ा हो गया। थोड़ी देर बाद उसकी नज़र दूर पहाड़ों पर पड़ी। भरे मन से वह पहाड़ों को निहारने लगा। साथ में विशाल और प्रशांत द्वारा कही गई घर की यादें भी शिवा पर हावी होने लगी। शिवा ना चाहते हुए भी विचारों से घिरने में विवश होने लगा और खुद से कहने लगा, “यार, कितनी अच्छी पहाड़ियाँ हैं ना!” प्रशांत ठीक कह रहा था…, पहाड़ों को देख कर, सब कुछ छोड़ने का दिल कर पड़ता है। कल मैं भी इस वक़्त इन पहाड़ियों के नज़दीक था और आज दूर जा रहा हूँ……..!!!!

कुछ देर बाद, सभी सवारियां बस में चढ़ गयीं और बस अपने गंतव्य की ओर रवाना होने लगी…………

तभी शिवा को ध्यान आया, “यार! इस बार ज्यादा सोच-विचार नहीं। अब सिर्फ सुहाना सफर और बाकी कुछ नहीं।”

कुछ घण्टों बाद बस जलन्धर पहुंच गई। पूरे रास्ते प्रशांत और विशाल, घर की यादों में ही खोए रहे और शिवा उनकी बातों को सुनकर भी अनसुना करता रहा।

जलन्धर पहुँच कर सभी दोस्त फ्रेश हुए और ऑटो का इंतज़ार करने लगे। तभी उनके पास एक बस आकर खड़ी हुई जो हिमाचल, उन्हीं के घर जा रही थी। विशाल बस का बोर्ड देखकर बहुत भावुक होने लगा। प्रशांत भी ज्यादा कुछ नहीं बोल पाया। पूरे सफर में शिवा ने बहुत कुछ इग्नोर किया, लेकिन ….. “इस दृश्य को वह इग्नोर नहीं कर सका और अंदर से बहुत कमज़ोर पड़ने लगा।”

अब तो शिवा के सामने सारा सफर घूमने लगा। वह सब कुछ याद करने लगा……..।
थोड़ी देर बाद ऑटो लेकर तीनों होस्टल पहुँचे।
विशाल और प्रशांत तो दोस्तों से मिलकर थोड़ा ठीक महसूस करने लगे, लेकिन शिवा विचारों के इर्द-गिर्द धँसता ही जा रहा था।

शिवा ने अपने बैग से सामान निकालना शुरू किया। हर बार की तरह इस बार भी शिवा की माँ ने उसके लिए खाना पैक कर दिया था। वैसे तो ढाबे में शिवा ने खाना खा लिया था, लेकिन यह सोचकर कि यह खाना मेरे घर से आया है और कहीं फेंकना ना पड़े, शिवा ने सारा खाना खाया और हर बार की तरह, इस बार भी लिफाफा सम्भाल कर रख लिया।

विशाल और प्रशांत तो दूसरे कमरे में दोस्तों के साथ बैठ कर अपना मूड फ्रेश करने चले गए थे, लेकिन शिवा अपने ही कमरे में बैठा विचारों में खोया हुआ था।

रात को डिनर करने के बाद सभी सो गए। लेकिन शिवा रात दो बजे तक करवटें लेता रहा और घुटन महसूस करता रहा। थोड़ी देर नींद पड़ने के बाद, सुबह नींद खुलने पर शिवा, एक दम झटके से उठा और अपने आप से कहने लगा..,”यह मैं कहाँ आ गया हूँ!” “मुझे घर जाना है। यहाँ मेरा दम घुट रहा है।” “मुझे ले जाओ पापा प्लीज मुझे ले जाओ! भगवान जी!, मुझे घर पहुंचा दो, मैं नहीं रह पाऊँगा यहाँ।” इन्हीं विचारों में फँसते हुए शिवा का सर भी दुःखने लग पड़ा। थोड़ी देर बाद शिवा ने महसूस किया, कि उसे तो तेज़ बुखार चढ़ा हुआ है। शिवा बहुत थकान महसूस कर रहा था। ब्रश करने के बाद शिवा बिस्तर पर लेट गया और मोबाइल पर अपने घर की फोटोज को देख कर आँखें भरने लगा।

विशाल और प्रशांत अब नॉर्मल हो चुके थे, अब उन्हें घर का कोई ध्यान नहीं था। खुश होकर वह सुबह उठे और नहा-धो कर कॉलेज के लिए चल पड़े। कॉलेज जाने से पहले विशाल ने शिवा से पूछा, “तू कॉलेज नहीं जाएगा क्या?”

शिवा ने कहा, “नहीं, मुझे बुखार चढ़ा है, आज नहीं जा पाऊँगा।”

इतना सुनने के बाद विशाल और प्रशांत दोनों कॉलेज चले गए।

शिवा ब्रेकफास्ट करने के लिए मेस पहुँचा। शिवा को अकेला आते देख, कुक हेल्पर ने शिवा से पूछा, “भैया जी, आप आ गए घर से? लेकिन ब्रेकफास्ट करने लेट क्यों आए? सब ठीक तो है ना?”

शिवा ने कुक से कहा, “तबियत ठीक नहीं है यार भाई।”

तभी कुक ने कहा, “समझ गया भैया, आप घर से आए हैं ना, तो लग रहा आपको ऐसा। रुको मैं आपके लिए गर्म-गर्म परांठा लाया, एकदम घर के स्वाद जैसा!”

हेल्पर कुक का इतना प्यार देखने के बाद शिवा बहुत इमोशनल होने लगा। एक तरफ जहाँ प्रशांत और विशाल ने फॉर्मेलिटी के अलावा और कुछ नहीं किया। वहीं दूसरी ओर, कुक का ऐसा प्यार देखकर, शिवा बहुत ज्यादा भावुक होने लगा।

खाना खाते हुए हेल्पर कुक से शिवा ने बताया, “यार भाई मुझे घर की बहुत याद आ रही है। मैं यहाँ नहीं रहना चाहता। तुम ही बताओ क्या करूँ? कैसे बताऊँ घर में यह सब????”

हेल्पर कुक ने समझाते हुए कहा, “भैया जी, बात यहाँ सिर्फ़ पैसों की नहीं है। बल्कि आपके भविष्य का भी सवाल है।” मैं तो यही कहूँगा कि आपको घर बात करनी चाहिए, नहीं तो आपकी सेहत और भी खराब हो सकती है। मानो मेरी बात, आप घर बात करो……..

दोनों ने बहुत बातें की और शिवा भी थोड़ी देर बाद ब्रेकफास्ट करके दोबारा अपने कमरे में रेस्ट करने के लिए आ गया। लेटे हुए भी शिवा की आँखों से पानी टपके जा रहा था। उसका दिमाग सिर्फ इसी बात पर अड़ा हुआ था कि वह यहाँ नहीं रह सकता। शिवा अपने आँसुओं को देखकर बहुत पश्चाताप करने लगा और कहने लगा, “बहुत बड़ी गलती हो गयी है मुझसे। मुझे जब पता था कि मैं घर से बाहर रहने में थोड़ा असहज महसूस करता हूँ, तो मुझे यह कदम नहीं उठाना चाहिए था। अब मैंने अपने पापा के पैसों का नुकसान भी करवा दिया है। क्या करूँ मैं क्या करूँ??? हे भगवान मदद करो!”

कुछ घण्टे बाद, शिवा के फोन पर उसके पापा का फोन आया…………….

“शिवा के पापा”: क्या हुआ बेटे? विशाल अपने पापा से बता रहा था कि तू कॉलेज नहीं गया है? बीमार कैसे हो गया है तू…?

शिवा के पापा का इतने प्यार से पूछना, शिवा के आँसुओं को बहने से रोक नहीं पाया। वह अपने पापा के सामने ही फोन पर ज़ोर से रो पड़ा और कहने लगा, “पापा मुझे ले जाओ, मैं यहाँ नहीं रह सकता। मुझे घुटन होती है। मैं नहीं पढ़ पाऊँगा यहाँ। प्लीज मुझे ले जाओ….!”

“शिवा की यह बात सुनकर, शिवा के पापा एक दम शोकड रह गए। उन्होंने शिवा से कहा, तू ऐसी बातें क्यों कर रहा है? तू बीमार है। टेंशन मत कर, ठीक हो जाएगा। दवाई ले और ज्यादा मत सोच। इतना कह कर उन्होंने फोन काट दिया।”

थोड़ी देर के बाद उन्होंने दफ्तर से छुट्टी ली और घर चले आए। घर पहुँच कर उन्होंने शिवा की माँ से सारी डिस्कशन की।

स्वभाव से थोड़े कड़क होने के चलते शिवा की माँ ने तभी शिवा को फोन लगाया और उसे साफ़ कह दिया, “अगर पढ़ना है तो ढंग से पढ़ नहीं तो कहीं झाड़ू-पोछे की नौकरी ढूंढ ले और कमा कर खा। अपनी अधूरी पढ़ाई छोड़कर, बापिस आकर हमें शर्मिंदा मत करना।”

शिवा अपनी माँ से इस तरह की बातें सुनकर मानो टूट ही गया। उसके दिमाग में अजीब-अजीब ख्याल घूमने लगे और उसका बुखार भी बढ़ने लग पड़ा। अब पछतावे के अलावा शिवा को दूसरा कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा था। उसके लिए स्थिति बिल्कुल अनियंत्रित हो चुकी थी।

शिवा का बुखार सामान्य नहीं हो रहा था……।
वह लगातार अपने दिमाग पर ज़ोर डाले जा रहा था। अब शिवा की हालत और भी खराब हो चुकी थी।

“वह ऐसा कोई साथ, अपने पास चाह रहा था, जो उसे समझे और उसकी देखभाल करे, उसे हिम्मत दे। लेकिन घर से कई किलोमीटर दूर भला ऐसा साथ उसे कहाँ से मिलता…….?”

“दोपहर तक, वार्डन ने डॉक्टर को बुला कर, शिवा का चेकअप करवाया और डॉक्टर ने शिवा को आराम करने की सलाह दी।”

रात तक शिवा का बुखार तो उतर गया, लेकिन सर दर्द में कोई सुधार नहीं हो रहा था। उस दिन खाना भी शिवा के रुम में ही आया। विशाल और प्रशांत ने भी शिवा को आराम करने की सलाह दी और उसे जल्दी सो जाने के लिए कहा।

दवाइयों के कारण शिवा जल्दी सो भी गया। सुबह तक शिवा थोड़ा स्वस्थ महसूस करने लगा। लेकिन घबराहट और सर दर्द के कारण उसे मानसिक थकान बहुत ज्यादा महसूस हो रही थी।

उसकी तकलीफ देखकर, “वार्डन सर” ने शिवा के घर फोन किया और शिवा की सेहत के बारे में, उसके घरवालों को सब कुछ बताया।

शिवा के पापा उसे देखने के लिए अगले दिन ही आ पहुँचे। “अपने पापा को होस्टल में देख शिवा ने हल्की स्माइल पास की..!”
शिवा के पापा ने, शिवा की हालत देखकर कहा, “बेटा यह क्या हाल बना लिया है तूने!” घर से तो तू बिल्कुल ठीक आया था और 2-3 दिनों में ही तू इतना बदल गया…..?

शिवा ने अपने “पापा” के सवाल का कोई जवाब नहीं दिया।

शिवा के पापा ने, विशाल और प्रशांत से भी अकेले में बातें की ताकि कुछ और भी पता चल सके……लेकिन उन दोनों को भी ज्यादा कुछ मालुम नहीं था।

थोड़ी देर में, “विशाल”, “शिवा के पापा” को खाना खिलाने मेस में ले गया।
वहाँ पहुँचकर विशाल ने, शिवा के पापा को खाना खाने बिठाया और खुद बापिस अपने कमरे में चला आया।

हेल्पर कुक को जब पता चला कि यह “शिवा भैया” के पापा हैं, तो वह तुरन्त उनके पास आकर कहने लगा, “प्रणाम साहब जी!” मैं यहाँ पर काम करता हूँ और शिवा भैया जी से बहुत अच्छी दोस्ती भी है।

यह सुनकर, शिवा के पापा ने उसे बैठ जाने को कहा और शिवा के बारे में कुछ और जानकारी देने के लिए कहा।

तब हेल्पर ने बताया कि, “शिवा भैया बहुत अच्छे हैं। लेकिन वह घर को बहुत याद करते रहते हैं। इसी कारण वह बीमार भी हो गए हैं। हो सकता है तो भैया जी को आप घर ले जाइए , जब ठीक हो जाएंगे तब भेज दीजिएगा।”

शिवा के पापा ने कहा, “बात तो ठीक है तुम्हारी, लेकिन अभी 3 दिन पहले तो यह घर से बिल्कुल स्वस्थ आया, तो आज ऐसा क्या हो गया इसे, कि यह उठ भी नहीं पा रहा है??????”

“साहब जी, मैं बता तो रहा हूँ, कि शिवा भैया घर को बहुत याद करते हैं। वह यहाँ पर नहीं रहना चाहते। अब बोलना तो नहीं चाहिए लेकिन, भैया जी ने खुद मेरे को यह सब बातें बताई हैं। अगर कॉलेज से इनका ट्रांसफर, नज़दीक के किसी अन्य कॉलेज में हो सके तो बहुत खुशी मिलेगी शिवा भैया को!”

यह सुन, थोड़े गुस्से से, शिवा के पापा ने उस हेल्पर कुक से कहा,”एडमिशन लेना क्या इतना आसान होता है? जब चाहा तब कॉलेज बदल लिया और जब चाहा कॉलेज छोड़ दिया?” ऐसा होने लगे तब तो हर जगह बच्चे फुटबॉल की तरह यहाँ-वहाँ घूमते ही रहेंगे।

इस पर हेल्पर कुक ने कहा, “बात तो आपकी सही है साहब जी, लेकिन……. मैं तो सिर्फ शिवा भैया की फिक्र में यह सब बोल रहा था। उनकी ऐसी हालत मुझसे देखी नहीं जाती।”

यह सुनकर शिवा के पापा ने खाना बीच में ही छोड़ दिया और बापिस होस्टल जाते हुए उन्होंने हेल्पर कुक से कहा, “तुम अपने काम की चिंता करो, शिवा की चिंता करने लिए हम बैठे हुए हैं।”

थोड़ी देर बाद, शिवा के पापा कॉलेज के प्रिंसिपल से मिलने जा पहुँचे…………।

कमरे में एंटर करने के बाद, प्रिंसिपल सर ने कहा: आइए “मिस्टर अवस्थी”, बैठिए।

“मिस्टर अवस्थी”: शुक्रिया प्रिंसिपल सर।

“प्रिंसिपल सर”: मुझे दो दिन पहले वार्डन सर ने शिवा की हालत के बारे में बताया था। अचानक तेज बुखार और सर दर्द, कुछ समझ नहीं आया। इसलिए, हमने यह निर्णय किया है, कि शिवा को आप कुछ दिनों के लिए घर ले जाइए। जब हालत में सुधार होगा, तब बापिस ले आना। शिवा भी हमारे कॉलेज के परिवार का एक सदस्य है, हमें भी उसकी सेहत और भविष्य की चिंता है। आप इसे कुछ दिन घर ले जाइए, और तो मैं आपके लिए क्या कर सकता हूँ, मिस्टर अवस्थी।

“मिस्टर अवस्थी”: “सो नाइस ऑफ यू सर!” आपके कहे अनुसार, मैं इसे घर ले जाता हूँ। पर, कॉलेज से शिवा का नाम न कट हो, इस बात का आप ख्याल रखिएगा।

“प्रिंसिपल सर”: “नहीं-नहीं मिस्टर अवस्थी, डोंट वरी, आप एकदम निश्चिंत रहिए।”

इतने में शिवा के ट्रेड के “विभागाध्यक्ष” “प्रोफेसर अजय” भी प्रिंसिपल सर के रूम में एंटर हुए…………।

आइए-आइए ‘अजय’ सर…., बैठिए (प्रिंसिपल सर ने कहा)।

“यह हैं शिवा के फादर। और यह हैं शिवा के ट्रेड के विभागाध्यक्ष।”
प्रिंसिपल सर ने दोनों का आपस में परिचय करवाया….।

“अजय सर, ने भी शिवा के पापा के साथ, शिवा के बर्ताव को लेकर काफी देर तक चर्चा की। उन्होंने बताया कि शिवा को हर बार, किस तरह घर जाने की बेहद उत्सुकता रहती है। और घर से आने के बाद कुछ दिनों तक तो वो क्लास में मानो, सिर्फ एक पुतले की तरह बैठा रहता है, जिसका मन कहीं ओर और दिमाग कहीं ओर होता है।”

“हालाँकि उन्होंने शिवा की प्रशंसा भी की, क्योंकि प्रथम सेमेस्टसर में वह फर्स्ट डिवीज़न से पास हुआ था, जिसका रिजल्ट कुछ देर पहले ही घोषित हुआ था। जबकि क्लास के कई बच्चे फैल भी हुए थे। यह सुनकर शिवा के पापा को खुशी भी हुई और थोड़ा दुःख भी। दुःख इसलिए कि, शिवा पूरा बदल चुका था।”

ख़ैर, मिस्टर अवस्थी ने “प्रिंसिपल सर” और “अजय सर” से इज़ाज़त ली और बापिस होस्टल आ गए।

“शिवा ने सारी पैकिंग कर रखी हुई थी, मानो उसने पहले ही मन बना लिया था, कि पापा के साथ घर जाना ही जाना है।”

दोनों गाड़ी में बैठे और सीधा घर आकर ही रुके। रास्ते में शिवा के पापा ने, शिवा से कोई बात नहीं की।

लेकिन…….. कुछ दिन बाद ही, यूँ शिवा को बापिस घर आते देख, मैडम अवस्थी का क्या रिएक्शन होगा, यह खुद मैडम अवस्थी भी नहीं जानती थी। इसी बात का डर शिवा को ओर भी घबराहट पहुँचा रहा था।

वैसे तो शिवा, अब अंदर से बहुत अच्छा फील कर रहा था! मन ही मन वह बहुत खुश भी था। अब ना तो उसे, कॉलेज की कोई सोच थी और ना ही अपने भविष्य की कोई चिंता थी। मानो, घर ही उसका भविष्य हो…….।

[लेकिन इसी खुशी और डर के माहौल के बीच, अब उसे अपनी माँ और अपने घर से मिलना है………….!!!!!!!]

चल उतर अब गाड़ी से, क्या सोचे जा रहा है? (शिवा के पिता ने थोड़े ऊँचे स्वर में कहा…….)

जी पापा, उतर रहा हूँ।

“शिवा की नज़रें उसकी माँ को ढूंढ रहीं थी, ताकि वह अपनी माँ के चेहरे से पता लगा सके, कि उनका मूड कैसा है।”

शिवा ने घर में एंटर किया, और उसने देखा कि माँ अंदर रसोई में खाना पका रही है। वह पाँव छूने गया और शिवा की कमज़ोर हालत देख कर उसकी माँ का मूड एकदम चेंज सा हो गया……..!

जिस माँ ने शिवा को पहले घर आने से साफ इंकार किया था और कहीं काम करके कमाने तक की सलाह दे डाली थी, “आज अपने बेटे की हालत देख कर वह पिघल गयी और उसका हाल-चाल पूछ कर उसे आराम करने के लिए कहने लगी।”

शिवा यह सब देख कर बहुत खुश हुआ! अब तो उसका सारा डर खत्म हो गया। फ्रेश बगैरा होकर, खाना खाकर, शिवा आराम करने अपने कमरे में चला गया। थोड़ी देर बाद, उसकी माँ, उसे दवाई लेकर आई और सुला कर चली गयी।

बाद में शिवा के पेरेंट्स ने, शिवा के बारे में आपस में काफी देर तक डिस्कशन की। मैडम अवस्थी ने कहा, “शिवा ऐसा तो था नहीं। फिर अचानक इसमें इतने बदलाव कैसे आ गए?”

जवाब देते हुए मिस्टर अवस्थी कहने लगे, “कॉलेज और होस्टल में सभी यही कह रहे थे कि, इसे घर जाने की जल्दी रहा करती है। “लेकिन इतनी भी क्या जल्दी? क्या इसे अपने भविष्य की ज़रा भी चिंता नहीं है? अब तो यह उम्र में भी बड़ा हो चुका है फिर भी……….!!!!!!”

इस पर मैडम अवस्थी बोलीं, “वो तो सब कुछ होगा, बस एक-दो दिन में इसकी तबीयत ठीक हो जाए फिर बापिस कॉलेज भेज देंगे इसे। अभी आप भी सो जाइये, थक गए होंगे।”

शिवा सुबह उठकर काफ़ी ठीक महसूस कर रहा था। लेकिन उसे यह सोच कर डर लग रहा था कि, “अब उसे दोबारा कॉलेज जाना होगा, तो कैसे जाएगा!” यही सोच-विचार करते-करते उसका सर फिर घूमने लगा।

दिमाग से थका-हारा शिवा, उठा और नहा-धो कर ब्रेकफास्ट करने पहुँच गया।

शिवा की माँ ने उसका हाल पूछा तो उसने कहा, “माँ, बस थकान सी लग रही है ज्यादा और कमजोरी भी।” यह सुनकर उसकी माँ ने कहा, – “बस एक-दो दिन की बात है, फिर ठीक हो जाएगा तू और देखना ठीक होने के बाद तू कॉलेज भी, खुश होकर जाएगा….।”

कॉलेज जाने की बात सुनकर शिवा बहुत घबराया और उसके शरीर से पसीना आने लगा। माँ ने उससे पूछा, “क्या हुआ? इतना पसीना क्यों आने लगा तुझे?”
इस पर शिवा, बात घुमा कर वहाँ से चला गया।

अपने कमरे में पहुँच कर शिवा, भगवान की फोटो के सामने खड़ा होकर कहने लगा, “मुझे नहीं जाना है कॉलेज बापिस, क्यों नहीं समझता कोई!” कैसे बताऊँ, किससे बताऊँ कुछ समझ नहीं आ रहा। “भगवान मदद करो!”

शिवा की यह बात, उसके पापा ने सुन ली। और उसके पापा ने भरे मन से यह बात मैडम अवस्थी को बताई।

मैडम अवस्थी को यह सुनकर बहुत गुस्सा आया और शिवा के कमरे में जाकर उससे कहने लगीं, “तू सीधे-सीधे बता, आखिर प्रॉब्लम क्या है तेरी? हर बार तेरी परेशानियों के चलते हमने दुःखी नहीं होते रहना। तू हमें धोखे में रखना बन्द कर और सब सच-सच बता।”

“यह सुनकर, शिवा बहुत डर गया और उसने सोचा कि बजाए इसके कि यह मुझे फिर से उस कॉलेज में पढ़ने भेजें, मैं सब बता देता हूँ, देखा जाएगा जो होगा।”

इतना सोच कर शिवा ने कहा, “हाँ मेरा दिल नहीं करता वहाँ जाने का।” मुझे वह जगह नर्क लगती है। मेरा दम घुटता है। और इस बात का पछतावा मुझे बहुत पहले से होता आया, लेकिन मैं हमेशा पश्चाताप के आंसुओं में डूबा रहा। और आपसे कहने की कभी हिम्मत भी नहीं हुई मुझे………।

“बड़ा आया पश्चाताप करने वाला। और हमने जो यहाँ तंगी में रहकर तेरी फीस और अन्य खर्चे उठाए उनका क्या? कितने चाव से तुझे अच्छे कॉलेज में एडमिशन लेकर दी और आज तू यहाँ ऐसे ड्रामे कर रहा है? तुझे शर्म नहीं आती??” (बहुत गुस्से से शिवा की माँ ने शिवा से यह बातें कहीं।)

“लेकिन शिवा था कि, वह जाने को अभी भी तैयार नहीं था।”

शिवा के इस बर्ताव से शिवा के पेरेंट्स बहुत दुःखी हुए।

शिवा भी गुस्से से घर के बाहर चला गया और पास के नाले के पास जाकर बैठ गया।

“शिवा के पेरेंट्स ने बहुत सोच-विचार किया और उन्होंने शिवा से एक बार आराम से बैठ कर बात करने का मन बनाया। उनको डर था कि कहीं शिवा कोई गलत कदम ना उठा ले।”

कुछ घण्टों बाद भी शिवा जब घर नहीं लौटा तो उसके पिता उसे ढूंढने बाहर चले गए। पास में नाले के किनारे उन्हें शिवा एक किनारे, बैठा हुआ दिखाई दिया तो शिवा के पापा ने गुस्से से उसे घर चलने को कहा।

शिवा बापिस घर आया और उसके पेरेंट्स ने उससे पूछा….,”तुम चाहते क्या हो शिवा? और तुम्हे दिक्कत कहाँ आ रही है?”
शिवा ने रोते हुए कहा, “मुझे वहाँ नहीं रहना है। मेरा दम घुटता है वहाँ और कोई अपना नज़र नहीं आता।”

इस पर शिवा के पेरेंट्स ने उसके आगे के भविष्य के बारे में सलाह लेनी चाहिए तो शिवा ने कहा, “मुझे यहीं अपने ही राज्य में कहीं एडमिशन ले दो, मैं पढ़ लूँगा। लेकिन बाहर मेरा दिल घबराता है, मैं नहीं रह सकता।”

कुछ दिन बीत जाने के बाद, शिवा के बेबस माँ-बाप में उसका एडमिशन उसी राज्य (हिमाचल) के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में करवा दिया। वहाँ भी शिवा ने अपने हिसाब से एक अच्छा सा रूम ढूंढा और रहने लगा…।

लेकिन एक हफ्ते के बाद ही, “शिवा का दिमाग फिर से घूमने लगा और ना चाहते हुए भी वह, दोबारा से घुटन भरी जिंदगी जीने लगा।” इसी के चलते वह छुट्टी लेकर घर आ गया और पहले की तरह आराम से अपने पेरेंट्स के सामने कहने लगा, “मुझसे वहाँ भी नहीं रहा जा रहा। मेरा एडमिशन यहीं नज़दीक करवा दो कहीं, जहाँ से मैं रोज़ घर से आ-जा सकूँ।”

इतना कहने की देरी थी, कि शिवा के पापा ने शिवा को ज़ोर का थप्पड़ दे मारा और कहा, “बत्तीमीज़!” कितने आराम से कहने लग पड़ता है कि मुझे वहाँ नहीं पढ़ना, यहाँ नहीं पढ़ना। “अरे! पढ़ना नहीं है तुझे तो मेरे पैसे तो बर्बाद मत कर। मेहनत करके कितनी मुश्किल से पैसे कमाए जाते हैं, तुझे एहसास भी है क्या?” बेशर्म कहीं का….।

साथ में शिवा की माँ ने भी शिवा को खूब डांटा और उसे तुरंत कॉलेज जाने को कहा।

शिवा के पेरेंट्स ने उसे कड़ी चेतावनी देते हुए कहा, “अगर तूने कॉलेज नहीं जाना है, तो मत जा। लेकिन घर के दरवाजे तेरे लिए आज से हमेशा के लिए बन्द हो जाएंगे, यह याद रखना।”

शिवा अपने पेरेंट्स के पाँव में गिरकर माफ़ी मांगने लगा और कहने लगा, “प्लीज मुझे समझो आप दोनों। मैं नहीं जी पा रहा घर से दूर। मुझे मत भेजो बाहर। मुझे मत निकालो घर से प्लीज प्लीज, समझो मुझे।” शिवा के इतना सब कहते हुए भी, उसके पेरेंट्स ने उसे घर से बाहर कर दिया और घर का दरवाजा बंद कर दिया।

“शिवा फिर से पास के नाले के किनारे जा कर बैठ गया और अजीब-अजीब ख्याल सोचने लगा।” शिवा ने उसी नाले में छलाँग तक लगाने की सोची, लेकिन “घरवालों के दिए अच्छे संस्कारों के कारण, उसने यह कदम नहीं उठाया और दिन ढ़लने के बाद वह बापिस घर आ गया……..।”

घर पहुंच कर उसने देखा तो दरवाजा खुला हुआ था। शिवा अपने कमरे में जाकर बैठ गया।

“एक ओर जहाँ शिवा के साथ पढ़ने वाले सभी दोस्त, अपना भविष्य सँवारने में लगे हुए थे, तो दूसरी ओर सोच-विचार में डूबा शिवा, अपने घर में छुप कर बैठा हुआ था।”

शिवा के पेरेंट्स ने भी शिवा से बात करना छोड़ दी थी। सिर्फ उसे खाना खिला देते, बाकी ज्यादा कोई बात नहीं करते।

“शिवा को कभी-कभी पछतावा भी बहुत होता, लेकिन अब पश्चाताप के आंसुओं के अलावा उसके पास, दूसरा कोई रास्ता, था भी नहीं………..”

एक तो सत्र के बीच में एडमिशन लेना भी मुमकिन नहीं था। इसलिए शिवा घर पर ही रहने लगा।
शिवा के पापा ने भी उसे घर के अंदर रहने की साफ चेतावनी दे दी थी। शिवा के पापा ने कहा, “खबरदार तू घर से बाहर निकला। तू घर से बाहर निकलेगा तो तुझे सभी देखेंगे और फिर मुझसे पूछेंगे कि यह घर पर क्यों है? मेहरबानी करके अब हमें ओर शर्मिंदा मत करना, वैसे ही तूने बड़े उपकार किए हैं हम पर।”

एक दिन अचानक, शिवा के सर पर, बड़ी ज़ोर की दर्द हुई। शिवा के पेरेंट्स उसे पास के हॉस्पिटल लेकर गए। शिवा बहुत कमज़ोरी महसूस कर रहा था।
डॉक्टर्स ने शिवा की बीमारी को देखने और समझने में बहुत समय लगाया।
काफी देर के बाद डॉक्टर ने मिस्टर अवस्थी को अपने केबिन में बुलाया और कहा, “देखिए मिस्टर अवस्थी, आपका बेटा डिप्रेशन का शिकार हो चुका है।” और यह कैसे हुआ, कब हुआ, यह सब आपको अच्छे से मालूम होगा।
बेहतर होगा, “इसके दिमाग से सारी चिंताएं और वहम आदि सब दूर भगाए जाएँ और जो डर इसके अंदर बैठा हुआ है, उसे भी बाहर निकाला जाए।” अगर यह सब समय पर नहीं किया गया, तो आने वाला कल शिवा की ज़िंदगी नर्क भी बना सकता है।” और हाँ, शिवा को इस बात का पता ना चले, नहीं तो वो फिर से तनाव ले सकता है। मैं कुछ दवाइयाँ लिख रहा हूँ, इन दवाइयों को रोज़ खिला दिया करो, और जितना हो सके शिवा को समझने और खुश रखने की कोशिश किया करो।” बाकी, ज्यादा घबराने की ज़रूरत नहीं है, बस आपके बच्चे का भविष्य अब आपके हाथ में है।”

इतना सुनने के बाद तो मानो शिवा के पेरेंट्स को बहुत बड़ा झटका लगा हो। वे सभी पुरानी बातों को याद करने लगे और पश्चाताप भी करने लगे। “काश! हमने बेटे को बाहर नहीं भेजा होता, तो आज इसकी यह हालत ना हुई होती।”

खैर, अब पछताने का कोई फायदा नहीं था। जो होना था वह, हो चुका था। इतना सब होने के बाद आज पछतावे के अलावा ना तो शिवा के पास कुछ था और ना शिवा के पेरेंट्स के पास कुछ था।

लेकिन फिर भी, शिवा के पेरेंट्स ने, शिवा का पूरा ध्यान रखा और समय-समय पर शिवा को मोटीवेट करने में भी अपना पूरा सहयोग दिया। उन्होंने शिवा के दिलो-दिमाग में सकरात्मकता के भाव पैदा करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी। साथ में खेल-कूद आदि कई गतिविधियों में शिवा का ध्यान केंद्रित करने की भरपूर कोशिश की।”

“इन्हीं सब प्रयासों के बदौलत शिवा के अंदर एक नई ऊर्जा का संचार शुरू हुआ जिससे वह खुद को काफ़ी हद तक तनाव मुक्त महसूस करने लगा!”

समय धीरे-धीरे बीता और नए सेशन के साथ, कॉलेजों में दाखिलों का दौर भी शुरू हुआ। शिवा ने इस बार, घर से थोड़ी दूर एक कॉलेज में एडमिशन लिया और दिल लगा कर अपनी पढ़ाई पूरी करने लगा……..।”

ख़ैर, यहाँ तक तो हुआ शिवा के जीवन का एक अधूरे सफ़र का समापन। वैसे बता दूँ, शिवा ने आगे भी, कई तरह की चुनौतियों का सामना किया। शिवा की पढ़ाई, शादी और ज़िंदगी….सब में कहीं न कहीं, ऐसे पल ज़रूर सामने आए, जहाँ उसने खुद को तनाव से घिरा हुआ, हारा हुआ और थका हुआ पाया।

वैसे तो खैर, हम सबकी ज़िंदगी, चुनौतियों से घिरी रहती है, लेकिन शिवा की आगे की ज़िंदगी में किस तरह की चुनौतियाँ आईं, यह सब जानने के लिए, आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतज़ार रहेगा..!!

धन्यवाद।

लेखक: शिवालिक अवस्थी,
धर्मशाला, हि.प्र।

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