अकाल मृत्यु
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मृत्यु का होना अनावश्यक है।
और मृत्यु में शेष-जीवन की तलाश भी।
वर्तमान को अतीत हो जाने की आदत है।
जीवन को इस अतीत से भविष्य चुनने की।
भविष्य बिना चुना ही जाता है रह,
हो जाती है मृत्यु-अकाल मृत्यु-।
जीवन को स्वप्न देखने की इच्छा
योजना पूर्वक ही होती होगी
कहानियाँ सुनकर।
दादियाँ-नानियाँ यूँ ही किस्से,कहानियाँ
सुनाती नहीं हैँ।
अगली पीढ़ी के संघर्ष उकेरती चलती हैं।
अपनी पीढ़ियों के अपूरित भविष्य ऊँड़ेल बढ़ती हैं।
आसमान का खालीपन समारोह पूर्वक
महाविस्फोट से भर जाता है।
मनुष्य का खालीपन सिर्फ नितान्त एकान्त से।
मृत्यु भीषण लगाव से हर उत्सव और समारोह से
अपनापन करता है स्थापित।
और स्वतः हुआ जाता है विस्थापित।
जीवन के मन में सम्पूर्ण जीवन का कथन है।
अनन्त पथ पर चलते चलने का विवरण है।
किन्तु,अकाल-मृत्यु स्वतंत्र है।
मृत्यु के तन में सम्पूर्ण जीवन का मन है
फिर से पाने की लालसा मनुष्य तन है।
किन्तु, मृत्युंजय मंत्र परतंत्र है।
मृत्यु की भाँति ही
समय अनन्त होकर भी तरसता रहा है समय को।
गति और विस्थापन के न होने से खाली है।
और
जीवन और इसकी क्रिया के निष्क्रिय होने से।
निर्धारित नहीं है मृत्यु।
इसलिए हर मृत्यु अकाल मृत्यु है।
——————————————30।9।24