अकड किस बात की प्यारे
प्रिये दोस्त,
आज इंसानियत के ऊपर एक छोटा सा निवेदन किया है
सोचता हूँ कि इंसान क्या है, कुछ भी नहीं
फिर भी धरती पर अकड़ इतनी दिखाता है,
पता नहीं क्यूं ??
जब धरती इतनी विशाल है उसको अपने ऊपर घमण्ड नहीं है
तब यह नर क्या चीज है, किस बात का उसको गुमान है !!
क्या भगवा पहन कर तिलक लगा कर
कोई बन जाता है “”हिन्दू”” !!
क्या पगड़ी पहनने दाढ़ी रखने से
कोंई बन जाता है “”सरदार”” !!
क्या दाढ़ी रख मूँछ कटा कर
कोंई बन जाता है “”मुसलमान”” !!
क्या कोट पेण्ट टाई लगा कर
कोई बन जाता है “” क्रिशचिन”” !!
यह तो इक पहनावा है मेरे यार !
सब छोड़ यहाँ जाना है मेरे यार !!
गर कर न सके सेवा मानवता की !
क्या करना है इन सब का मेरे यार !!
दुनिया में आये हैं तो कर्म अच्छे करो मेरे यार !
न किसी को तंग करो यहाँ पर मेरे यार !!
खुशिओं से दामन भर दो किसी का मेरे यार !
तभी बाँटने से तुम को भी मिलेगा प्यार मेरे यार !!
पहरावा तो दुनिया में न रहा किसी का मेरे यार !
उतर कर जाना है यहाँ कफ़न भी मेरे यार !!
जैसे गर्भ में माँ से जन्म लिया था मेरे यार !
बस वैसे ही संसार छोड़ चले जाना है मेरे यार !!
कवि अजीत कुमार तलवार
मेरठ