अंधेरे में छिपे उजाले हो
मय के छलकते प्याले हो
अंधेरे में छिपे उजाले हो।
चन्द्रमा खेलता बादल में
छुपता,हंसता आंचल में
चांदनी नहलाती धरती को
सुकून बिखेरती धरातल में
रंग बिरंगे उड़ते गुब्बारे हो
अंधेरे में छिपे उजाले हो ।
लहजे में रस टपकता है
तु गुलाब सा महकता है
दिल दरिया सा है तेरा
तु हर बात समझता है
हर कदम पर सम्भाले हो
अंधेरे में छिपे उजाले हो
जगमगाते हुए सितारें हो
आंखों में बसे फव्वारे हो
इक झलक से दुख दूर हो
क्या कहें कितने प्यारे हो
दुखों से मुझे निकालें हो
अंधेरे में छिपे उजाले हो
नूर फातिमा खातून “नूरी”
जिला -कुशीनगर