अंधेरे की चीख़
अक्सर जब अकेला अंधेरा..
कसमसा कर चीख पड़ता है..
तब चौंक पड़ती हैं ऑंखों की पुतलियाॅं
फिर अनिवार्य रूप से सक्रिय हो उठते हैं
अंर्तभाव!
और उलझ पड़ते हैं शब्दों से
धीरे-धीरे!
स्वरचित
रश्मि लहर
अक्सर जब अकेला अंधेरा..
कसमसा कर चीख पड़ता है..
तब चौंक पड़ती हैं ऑंखों की पुतलियाॅं
फिर अनिवार्य रूप से सक्रिय हो उठते हैं
अंर्तभाव!
और उलझ पड़ते हैं शब्दों से
धीरे-धीरे!
स्वरचित
रश्मि लहर