अंधेरी रातों में मैंने
अंधेरी रातों में मैंने
जुगनुओं को इतराते देखा
मंजिल ढूंढते राही को
पथ का साथ निभाते देखा
देखा मैंने चांद सितारों,की
लुका-छुपी का खेल
रात अंधेरी और अकेली
दोनों में थे अच्छे मेल
अंधेरी रातों में मैंने
बच्चों का मां से हठपन देखा
बच्चों का मन बहलाने को
मां को चांद लुभाते देखा
अंधेरी रातों में मैंने
बागों का सूनापन देखा
भ्रमर बगैर फूलों को
तन मन से मुरझाते देखा
अंधेरी रातों में मैंने
समंदर की कहरों को देखा
उफानों के साथ उठी
अनगिनत लहरों को देखा
अंधेरी रातों में मैंने
जुगनुओं को इतराते देखा
मंजिल ढूंढते राही को
पथ का साथ निभाते देखा
————–रवि सिंह भारती—————