अंधेरी झाड़ी
क्यों घोर अंधेरे में दौड़ी, पैरों में लडखडाहट सी होरी।
शायद घर की कोई जल्दी है, कोई मैसेज मिल गया है भाग लो।।
पर नहीं मोबाइल हाथ में, एक बैग लटकता साथ में।
कुछ तो पूछूं क्या बात हुई? दो कदम बड़े ना बात हुई।।
देखा पीछे दो गुनडे से, हाथों में सोटे डंडे थे।
पूछा! एक लड़की गोरी सी, बैग हाथ में भोली सी।।
किधर गई यहां दो मोड़़ है, अंकल लड़की वो चोर है।
समझ हाल सारा आया, पर अबला जान तरस खाया।।
घोर अंधेरा कुछ ना दीखा, उन्हें उल्टी रहा चला दीता।
तब झाड़ी से उठकर आई, वह सम्मुख गोरी मुस्काई।।
थैंक यू अंकल वैरी मच, मुझे बचाया कहती हूं सच।
मै छोड़ू चोरी गन्दी को, अब क्षमा करो तुम बंदी को।।
कसम है तौबा बाप की, ना करूं कमाई पाप की।