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16 May 2021 · 1 min read

अंधेरा

********* अंधेरा *******
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**** 222 222 122 ***
**********************

छाया ये कैसा है अन्धेरा,
कब होगा ना जाने सवेरा।

सांसे जब तक मेरी चलेगी,
तब तक जग में अपना बसेरा।

जख्मों ने दस्तक दी रोशनी में,
मलहम जालिम मेरा घनेरा।

दुख सहता रहता रोजमर्रा,
भूखा रहता भू पर कमेरा।

हर कोई महफ़िल में अकेला,
जग में गम में होता न मेरा।

मनसीरत है बेखौफ कहता,
छिप जाता है सारे मार घेरा।
************************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

Language: Hindi
1 Comment · 250 Views
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