अंधेरा सा पसर जाने लगा
अंधेरा सा पसर जाने लगा
जो सूरज लौट के घर जाने लगा
शायद मोहब्बत कम हो गई
तुम्हारा तो जी भर जाने लगा
दौड़ ज़िन्दगी की कैसे जीतेगा
जो चलते चलते ठहर जाने लगा
फ़िक्र तो रातों की है मुझे
दिन किसी तरह गुजर जाने लगा
अंधेरा सा पसर जाने लगा
जो सूरज लौट के घर जाने लगा
शायद मोहब्बत कम हो गई
तुम्हारा तो जी भर जाने लगा
दौड़ ज़िन्दगी की कैसे जीतेगा
जो चलते चलते ठहर जाने लगा
फ़िक्र तो रातों की है मुझे
दिन किसी तरह गुजर जाने लगा