अंधी दौड़
मैंने कब चाहा था मुझको
दूर अपने से कर देना
मैंने कब चाहा था मुझको
अंधी दौड़ में ढकेल देना
झूठी शान और दिखावा हमको
ऐसे दोराहे पर ले आया है
आगे कोई ठौर नही है और
ना ही पीछे है कोई ठिकाना
मैं था कच्ची माटी का ढेला
तुमने जैसा चाहा ढाल दिया
पाल पोसकर बड़ा किया और
जीवन मेरा संवार दिया
अपनी महत्वाकांक्षा की छवि
सदा मेरे अंदर देखी है
जो स्वयं नहीं बन पाए कभी
वह बनने मुझको प्रेरित किया
एक दूजे को देखा देखी
लक्ष्य हम अपने तय करते हैं
बने नहीं जो हमारे लिए उनको
पाने की होड़ हम करते हैं
समय और पैसे की बर्बादी
जो है सो अलग बात है
अवसाद और कभी कभी जीवन
तक से खिलवाड़ हम करते हैं
मानव जीवन इस दुनिया में
भगवान की अनुपम भेंट है
आपसी प्रेम और स्नेह में बंधा
जीवन हमारा अमूल्य है
अपनी क्षमता और प्रयास को
ध्यान में हरदम रखना है
इसी सूत्र से लक्ष्य हासिल कर
अवसाद से हम सभी को बचना है
इति
इंजी संजय श्रीवास्तव
बीएसएनएल, बालाघाट, मध्यप्रदेश