अंधभक्ति और उसका कहर
भक्त अपने भगवान के बारे में अलग अलग समय पर विभिन्न मुद्राओं विभिन्न स्थानों पर विभिन्न कल्पनायें करता है..वह कभी उसे आसमां में निहारते है..तो कभी पाताल.. भूत भविष्य में..कभी जीवों में देखता है. कभी पत्थर में ..अलग नामों से खोजता है..समस्त प्रकृति एवम् अस्तित्व में खोजने के बाद थोड़ा ठहरता है तत्पश्चात थोड़ा खुद को टटोलता है.
भगवान तो नहीं मिलता.
थोड़ा सुकून मिलता है.
थोडे जागरण की स्थिति में ..
वह पहली बार सोच पाता है..
देख पाता है उन चीज़ों को..
जो निसर्ग को जान लेता है..
वह परमात्मा के प्रवाह में धारा में सामंजस्य स्थापित कर लेता है…
अध्यात्म की ओर…
आपकी चेतना, ध्यान, विवेक, धैर्य, चाहत,जुनून आपके मार्ग तय करते है.
डॉ महेन्द्र सिंह हंस