अंदाज़े – बयाँ
अंदाज़े – बयाँ
खामोश रहकर भी बहुत कुछ कहने का सिला है तुझमे
तू जहां से भी गुजरे, तेरी खामोश निगाहें बयाँ करें तुझको
इन्तिख़ाब किया है उस खुदा ने इंसानियत की राह के लिए तुझको
खुदा के हर एक बन्दे से तुझे मुहब्बत हो जाए ये आरज़ू है मेरी
इंतिकाम की राह पर खुदा के बन्दे जाया नहीं करते
कुर्बान कर देते हैं खुद को खुदा की राह पर , पर किसी को सताया नहीं करते
वो इबादत की एक नई इबारत चाहते हैं रोशन करना
खुदा के हर एक बन्दे को खुदा के करीब लाने की आरज़ू लिए
इमारत इबादत की बुलंद की है उसने कुछ इस तरह
खुदा की राह में खुद को कुर्बान कर देते हैं कुछ इस तरह
इंसान का इंसानियत पर से जिस दिन भरोसा उठ जाएगा
आदमी आदमी न रहेगा कीड़ा होकर रह जाएगा