अंदाज़ इश्क का
जिसको चाहो वो मिलता नहीं
ये कैसा अंदाज़ है इश्क का
जहां सोचा भी नहीं कभी वहीं
रिश्ता पनपता है इश्क का।।
कुछ पता ही नहीं चलता
कब सफर शुरू होता है इश्क का
है नहीं तुम्हारे बस में कुछ
अंदाज़ ही ऐसा होता है इश्क का।।
जान बन जाता है एक अनजान
फलसफा यही है इश्क का
तुम तो बस एक इंसान हो
खुदा भी दीवाना है इश्क का।।
नींद न आना, फिर भी सपनों में खो जाना
ये अंदाज़ पुराना है इश्क का
सबकुछ बदल रहा ज़माने में आज
लेकिन नहीं बदलता ये अंदाज़ इश्क का।।
पास हो या हो वो दूर तेरे
रहता है हमेशा वो दिल में तेरे
दिख जाता है बंद आंखों से वो
यही तो जादू है इश्क का।।
जो कहते थे बुरा भला इसको
जान गए वो भी रुतबा इश्क का
जब हो गया गिरफ्तार वो इश्क में
तभी हुआ उसे एतबार इश्क का।।
है ये यकीं जबतक सलामत है ये जहां
नाम रहेगा तबतक इस इश्क का
लाख कोशिश करे कोई रोक नहीं पाया,
पेड़ बनने से अंकुर इस इश्क का।।