अंत ना अनंत हैं
लाख डरा पर रुका नहीं
आँसू गिरा पर झुका नहीं
बार-बार जब गिरा ज़मी पर
एक बार ना थका कभी तब
क्युकी अंत ना अनंत हैं।
कईयों की परछाई देखी
कईयों के संग मिला जुला
चापलूस ना बना कभी पर
ना ही किसी का हक छिना
क्युकी अंत ना अनंत हैं।
रात हुई तब सोया नहीं
सफलता मिली तब खोया नहीं
विश्वास भरी रोशनी लेकर
चलता रहा बस चलता रहा
क्युकी अंत ना अनंत हैं।
कुछ रुकावट आई थी पर
रुका नहीं वो राहों पर
रुकावटों को ढाल बनाकर
दुःख-दर्द सब सहता रहा
क्युकी अंत ना अनंत हैं।
ना था अनुभव क्या करना
बस अलग कुछ करना था
किसी की बनाई राहों पर
कभी ना अब तो चलना था
क्युकी अंत ना अनंत हैं।
एक ओर परिवार खड़ा था
एक ओर सपनो का मंजर
दोनों की महता थी अलग
पर चला दोनों को लेकर साथ
क्युकी अंत ना अनंत हैं।