*और फिर बहुऍं घरों के कामकाज निभाऍंगी (हिंदी गजल/ गीतिका)*
और फिर बहुऍं घरों के कामकाज निभाऍंगी (हिंदी गजल/ गीतिका)
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(1)
बेटियॉं तो एक दिन घर से विदा हो जाऍंगी
और फिर बहुऍं घरों के कामकाज निभाऍंगी
(2)
कौन जाने जन्म लेकर किन घरों में पल रहीं
एक दिन बन कर हमारे घर जो बहुऍं आऍंगी
(3)
सिर्फ गमलों में उगी इक्कीस की होने लगीं
बेटियॉं ससुराल जाकर क्यारियों को पाऍंगी
(4)
छोड़कर जब मायका ससुराल को यह चल पड़ीं
संस्कारों को लिए दुनिया नवीन बसाऍंगी
(5)
सास भी तो थी बहू, अब मालकिन कहला रही
मालकिन बहुऍं सभी यों एक दिन कहलाऍंगी
(6)
बेटियों को सब जगत् की मान देना सीखिए
एक दिन यह बन बहू, घर आपका महकाऍंगी
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रचयिता : रविप्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451