अंतिम इच्छा जल
विश्व जल दिवस पर कविता
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जल है जीवन का आधार,
करता सबका है बंटाधार।
जल से धरती परती सजती,
मिले ना जल हो जन लाचार।
जल जीवों की काया है,
दो तिहाई भाग में छाया है।
मृदु,खारे, रंगीन कहीं बन,
अनेक रूपों में पाया है।
जल बिन तरु सूखे डगरी का,
छाया मिटती उस नगरी का।
बनकर गंगाजल है धोता,
मैल पुरानी सब गगरी का।
अंतिम जब जीवन की बेला,
खत्म हो रही जीवन मेला।
तब दो बूंद पिलाकर जल ही,
मौत से करते ठेलम ठेला।
जल इतना अहम है भाई,
सब कहते हैं गंगा माई।
समझ ना पाये होके अंधे,
जल में इतनी मैल गिराई।
दूषित जलाशय फाँसी के फंदे,
हमारे विकास ने किये हैं गंदे।
खूब फलते फूलते हैं देखो,
इस धारा पर पानी के धंधे।
जल की बूंद बूँद का संचय करना होगा,
हो ना जाये कहीं जल संकट डरना होगा।
यदि नहीं सम्भला धरा का हर जीव जन,
तो जल बिन मछली जैसे मरना होगा।
◆◆◆अशोक शर्मा 24.05.21◆◆◆