अंतिम आरामगाह
दोस्ती सी हो गयी है
मेरी
इस श्मशान घाट से
एक दिन मुझे भी तो
आना है यहीं
मेरी अंतिम आरामगाह।
जब भी आता हूँ
किसी को विदा करने
लगता है छूट गया है
पीछे कुछ
एक पूरी ज़िन्दगी
हो जाती है खत्म
यहाँ आने के बाद।
मन में
जाग उठता है बैराग
लगता है जी रहे हैं हम
व्यर्थ ही
जो भी कमाया था
जीवन भर
सब तो यहीं रह गया है।
कुछ नहीं है साथ में
ले जाने के लिये।
चिता पर लिटा दिया
उसी पुत्र ने
लगा दी आग
जिसे दिया था जन्म
और फिर वो कपाल-क्रिया
अपना ही खून
तोड़ता है खोपड़ी
वापस लौट जाते हैं
अपने सभी
करके आग के हवाले।
जिस तन पर गर्व था
जिस धन पर गर्व था
जिस जीवन पर गर्व था
सब राख बस राख
पंच तत्व विलीन
पंच तत्व में
बचा क्या अब
कुछ मुट्ठी राख
कुछ हड्डियाँ
लिखा था वहाँ
अंतिम मंज़िल तो यहीं है
इंसान लगा देता है पूरा जीवन
यहाँ तक आते आते
यहीं तो है तेरी
अंतिम आरामगाह
अंबर हरियाणवी
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