अंतहीन
हर कोई, सबकुछ, कर गुज़रने की ज़िद में है
नहीं मालूम उसको, वो भी, वक़्त की जद में है
मौसम, दूर से तो, यहाँ का अच्छा लगता है
वैसे शहर में सुना है, मीठा ज़हर भी बिकता है
माहौल स्वरों से गूंजता बिजलियाँ हैं ढेर
हर शख़्स अपना मातम सर पर लिए फुदकता है
बड़े ही नेक ख़्याल हैं इस शहर के लोग
हर कोई अपने साथ अपना अज़ाब लिए फिरता है
मिट गये हैं जब से खरीद दार जिंस के
आदमी टोकरी में , अपना ईमान, लिए बेचने निकलता है
डा राजीव “सागरी”