अंतहीन प्रश्न
जीवन एक अंतहीन प्रश्न की भांति आकांक्षा और अभिलाषा को समेटे हुए ।
आशाओं और निराशाओं के पलों को समाहित किए हुए ।
व्यथाओं और कुंठाओं से युक्त क्षणों को लिए हुए ।
आधारहीन तर्कों की विवेचना करते हुए यथार्थ को नकारते हुए ।
परिकल्पनाओं को प्रतिपादित करते हुए।
आत्मविश्लेषणहीन आत्मवंचना करते हुए।
असत्य को सत्य के आवरण में प्रस्तुत करते हुए ।
कर्तव्यों के निर्वाह में हानि लाभ खोजने का प्रयत्न करते हुए ।
कूटनीति और षडयंत्रों के नव आयामों को खोजते हुए ।
असफलता की हताशा से कुंठा ग्रस्त होते हुए।
अंत में वितृष्णा लिए जीवन से विमुख होकर वैराग्य भाव से जीवन की सार्थकता तलाशते हुए प्रश्न बन कर रह जाते हुए ।