अंतस का यज्ञ
लहरों की थपेड़ो से क्षतिग्रस्त हो नाव,
फिर भी समंदर में उतरना पड़ता है!
चाहे कितनी बार लड़खड़ाएँ कदम,
हिम्मत से उठ कर आगे बढ़ना पड़ता है!
कोई छोड़ गया जो हाथों से हाथ तो,
किसी और के हाथों जीवन सजाना पड़ता है!
कोई नही चाहता है खुद को बदलना,
वक्त के साथ सभी को बदलना पड़ता है!
जब-जब कोई पूछे ‘कैसे हो तुम?’
‘हाँ, ठीक हूँ।’ हर बार कहना पड़ता है!
लोग जान न लें दर्द-ए-दिल का हाल,
इसलिए हँसना मुस्कुराना पड़ता है!
आँखों के आँसू कोई जो देख ले अगर,
किसी कतरे का बहाना बनाना पड़ता है!
हर भाव को मन की माला में गूँथकर,
अनचाहे श्रृंगार से सजना पड़ता है!
सोने को भी सोना बनने के लिए,
कुंदन-सा आग में जलना पड़ता है!
जिम्मेदारी और फर्ज की खातिर,
अपनों से ही दूर रहना पड़ता है!
यूँ ही कुछ भी नही मिलता जहाँ में,
कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है!
जीवन की राह पर डटे रहने के लिए
निरंतर संघर्ष करते रहना पड़ता है!