अंतर्मन विवशता के भवर में है फसा
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अंतर्मन विवशता के भवर में है फसा
कई दफा खुद पर यूँ ही है हंसा
लब्ज़ हार गया थक गया हालतों से
पर उतार न सका नशा वो अजीब सा
रूबरू हो कर आबरू से बे आबरू हो गये
फिर भी अपने जाल में खुद को ही है कसा
कब तलक खेलोगे अकेले खुद का ही खेल
जब लगना ही है जीत कर भी हार का ठसा