अंतर्मन में खामोशी है
एक गीत आपके हवाले!!
अंतर्मन में ख़ामोशी है ऊपर ऊपर क्या बोलूंँ?
तेरा सच है ज्ञात सभी को तुझको पत्थर क्या बोलूंँ?
उमस भरा मन के आंँगन में,
तुलसी तुम पतझड़ मत लो।
अंखियां सावन बन बरसे हैं,
जीवन निर्झर क्या बोलूंँ?
अंतर्मन में ख़ामोशी है ऊपर ऊपर क्या बोलूंँ?
तेरा सच है ज्ञात सभी को तुझको पत्थर क्या बोलूंँ?
एक मुहब्बत का दामन है,
चूहे लाख कुतरने को!
दौलत ,शोहरत, जात, घराना,
बोलो किस पर क्या बोलूंँ?
अंतर्मन में ख़ामोशी है ऊपर ऊपर क्या बोलूंँ?
तेरा सच है ज्ञात सभी को तुझको पत्थर क्या बोलूंँ?
आज अंँधेरों का पहरा है,
प्रेमी के मन के आंँगन में।
दीप बुझा आंँधी में या फिर
बुझा है थक कर क्या बोलूंँ?
अंतर्मन में ख़ामोशी है ऊपर ऊपर क्या बोलूंँ?
तेरा सच है ज्ञात सभी को तुझको पत्थर क्या बोलूंँ?
बहुत सरल है चारण बनकर,
करूंँ समर्थन झूठों का।
क्या इस कवि का आत्म धर्म है।
तेरे दर पर क्या बोलूंँ?
अंतर्मन में ख़ामोशी है ऊपर ऊपर क्या बोलूंँ?
तेरा सच है ज्ञात सभी को तुझको पत्थर क्या बोलूंँ?
©®दीपक झा “रुद्रा