अंतर्द्वंद
नमन माँ शारदे!
विषय:- #अन्तर्द्वन्द
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टिकी निगाह क्षितिज पर ,सवालों के नभ में
दायित्वों का बोझ बंधा ,क्यों नारी आँचल में।
गर्भ से लेकर मरण तक ,देती परीक्षा हर पल
अंतर्द्वंद की नम धरा पर ,कौन बीज रोपे हर पल ।
झंझावातों के चक्रवातों सा ,घिरा द्वंद में अस्तित्व
उत्ताल प्रश्नों की तरंगे ,कोलाहल कर उठती तव
अशेष ,मौन सन्नाटे में रहते निरुत्तर जब ठगे से
लहुलुहान हो उर समाते,स्वप्न सभी थे जो जगे से ।
उम्र जब ड्योढ़ी चढ़ती,देह अनावृत हो जाती
मन के द्वंद जाल में ,लाज स्वयं ही सिमट जाती।
अनुत्तरित प्रश्नों से झांकता ,शून्य सा वह तारा
अंतर्द्वंद के धागों में उलझ भोला मन बौराया।
दिशाहीन सा मन मेरा तब ,उलझा ,सुलझा सा
इस रण में घिरता विश्वास ,क्यों था धुंधलाया सा
अघोषित ‘अन्तर्द्वन्द’ के युद्ध में उमड़ती उर्मियाँ
भावनाओं के भँवर में डूबती उतराती सिसकियाँ ।
स्वरचित:- मनोरमा जैन पाखी
भिंड मध्य प्रदेश