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7 Dec 2020 · 1 min read

अंतर्द्वंद

अंतर्द्वंद

मन का शोर तुमुल सा मचाता
अंतर्द्वंद कलेजा चीरता जाता
यादों के फंदों में जाते उलझते
निकास न जाने कौन से रस्ते
कोई पकड़ बाहर खींच लाता
ज़िंदगी की पेंचे सुलझा जाता
भटके विचारों की उथल पुथल
बसता अंतर्मन नीरव कोलाहल

रेखा
कोलकाता

Language: Hindi
1 Like · 2 Comments · 466 Views

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