अंतः परिचय
निरन्तर गहरे
एक अन्धक सफर में,
मैंने एक रोशनी को पहचाना है
जो झिलमिलाती हुई
बहुत दूर, या नज़दीक मेरे
कहां है ?
मुझे यह मालूम नहीं,
मगर मेरे और उसके बीच की दूरी
महज़ कुछ अंको का हिसाब नहीं है
बल्कि ,
मैं उस रोशन बिन्दू के कितने निकट हूं
इसका पैमाना मेरी सोच है,
या वह मुझसे कितने दूर है
इसका परिणाम मेरा कर्म है,
और इन दोनों के बीचों-बीच
मैं कौन हूं, कैसा हूं ?
ये मेरे हौसले बतलाते हैं,
मेरी दृढ़ता ही इसकी गवाह है।
-शिवम राव मणि