” अंडरस्टैंडिंग “
जब बातें थी अनगिनत सुनाने को
उस वक्त एकांत की कमी खली
अब एकांत ही एकांत है
तो बातें ढूंढ़े नही मिली ,
मिलती भी हैं तो वो बाते
जो दूसरों को सुनाने के लिए
चिल्ला कर कही जाती हैं
उसके बावजूद भी समझ नही आती हैं ,
बड़े – बड़े दावे थे ” अंडरस्टैंडिंग ” के
बिन कही बातों को समझने के
सब खोखले हो गये
सारे दावे धरे के धरे रह गये ,
उन खोखले दावों मे अब बस
सरसराती हवा है आती – जाती
कभी – कभी तो ये मुयी हवा भी
दबी जुबान में ताने दे जाती ,
कहती इस युग में सब प्रेम
मेरी तरह हवा हो जाता है
ना मैं पकड़ में आती हूँ
ना वो पकड़ में आता है ,
जिसने प्रेम किया
वो बिना मिले अमर हो गये
तुमको तो मिलन और प्रेम दोनो चाहिए
ये व्यापार नही है
जहां नुकसान को भी
नफा में बदलने का गुर आता है
एक प्रेम ही है जहाँ
अच्छे से अच्छा भी मात खा जाता है ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 20 – 01 – 2019 )