अंजुरी भर….
शहर में बारिश की छपाक
जैसे स्मृति के अरण्य में
कोई प्रणय- निवेदन की नाव
उतार दी हो किसी ने ।
बारिश का ताबीज़ पहन कर
खुद को बचा लिया जाएगा
किसी मृग मरीचिका की नज़र से
बारिश में कुछ धुलता नहीं
गहरा जाता है
कुछ पहेलियाँ आज हल हो जाएंगी
क्योंकि वक्त ने व्यवसाय करके
सौदेबाज़ी की है — बूँदों से
और अश्रु-राशियाँ श्वास भर रह गईं हैं ।
एकांत का रेशा बुनते-बुनते
मुस्कराहट की चादर को
तिरस्कृत कर जाती हैं, बारिशें।
बारिशें स्वयं भी गीलापन सहती हैं
जब भीगते पेड़ की पत्तियाँ
नाकामयाब होती हैं
नन्ही चिड़िया का घर बचाने में ।
बेरंग बूंदें बदहवासी में
खटखटाती हैं सूरज का किवाड़
कि खोल दे तो बना लेंगीं
बारिश का इत्मीनान
एक इंद्रधनुष !