अंजाम-ए-वफ़ा – अजय कुमार मल्लाह
हमको तो अंजाम-ए-वफ़ा ख़ूब है मालूम।
हम इश्क़ निगाहों में अब पलने नहीं देंगे।।
एवज़ में मोहब्बत के लोग देते हैं कज़ा।
परवाने को फ़ानूस में जलने नहीं देंगे।।
दिल को बनाकर रखेंगे अश्म का टुकड़ा।
इसे मोम की तरह से पिघलने नहीं देंगे।।
कोशिश तो है इनकी हमें कीचड़ में गिरा दें।
पर यक-बयक खुद को फिसलने नहीं देंगे।।
इस वक़्त इनपे हुस्न की तासीर है ‘अजय’।
तलवों से इन्हें ख़्वाब मसलने नहीं देंगे।।