अंजानी सी गलियां
अंजानी सी गलियां मुझे,
न जाने क्यों,
जानी पहचानी सी लगने लगी है।
एक साया परियों के जैसी,
आंखों में मेरे,
झिलमिलाने लगी है।
क्या इसी को मुहब्बत कहते हैं?
अंजानी सी गलियां . . . . . .
एक जादू, एक नशा,
कोई तो शक्ति है,
जो मुझे खींच लाती है, उन गलियों में।
बेकाबू एक आकर्षण,
उस क्लीं को ही ढुंढता है।
सौन्दर्य रस पीने को बागों के उन कलियों में।
कोई मायावी है जो माया कर गई,
बे रंग सी जिंदगी में, रंग भर गई।
एक हसीन एहसास,
जो दिल के है पास।
हर पल प्यार ही प्यार बरसाने लगी है।
क्या इसी को मुहब्बत कहते हैं?
अंजानी सी गलियां . . . . . .
एक वादा एक इरादा,
एक इशारा तो है।
जो दिवाना बना कर दुनिया से दूर कर देती है।
कुछ यादें कुछ सपने,
एक दिवानगी तो है।
जो पागल बना कर मदहोशी में चूर कर देती है।
सम्मोहन शक्ति वाली रहस्यमयी है।
दिमाग काम ही नहीं करता,
क्या गलत क्या सही है।
आवारा पागल दीवाना,
आशिक है।
ये दुनिया मेरा नाम बदलने लगी है।
क्या इसी को मुहब्बत कहते हैं?
अंजानी सी गलियां . . . . . .
नेताम आर सी