अंग मे उमंग मार अनंग उघार देखि,
वसन विहीन तन तरुणी कें देखिक’,
मन होइए पीबि ली खौलैत इनहोर पाइन के।
आनी हम मखान पात पोछी अपन मुह हाथ,
आगिसँ जुड़ाली हम दग्धल चाइनके।।
कुन्तल कोमल मुख कमल उरोज देखि,
विषसँ भरल कोनो वनिता विषाइन के।
अंग मे उमंग मार अनंग उघार देखि,
मन होइए त्यागि दी विचार लाज आइन के।।
लाजो अछि लाचार एतए विवश विचार भेल,
चम्पा आऔर जुही चमेली अंग मधुपाइन के।
काजर मे नहाली कालीख चुन के लगाली हम,
केस कान काटिक’ भगा दी मिथिलाइन के।।
शशिमुख श्वेत जेना दुध मे नहाएल छलि,
भूखसँ भूखाएल अंग अंग रधिकाइन के।
आँखिसँ चुराबी काजर लाली हुनक ठोरके,
विषसँ भरल व्यवहार रसिकाइन के।।
पयोधर पुष्ट मुदा हिरणी नयन छलि ,
कोंढ़ी कचनार सन रूप रसिकाइन के।
रूपक बाजार बीच कटि कुसियार सन,
रस टपकैत अंग गोर गणिकाइन के।।
गोंत मे नहा दी गोबर गाल मे लगा दी,
आऔर आँखि मे लगा दी मिरचाइ मलिकाइन के।
तरुणी के तनक तरंग तमसाएल सन,
पवन चूमि अंग के खेलाइत छल डायन के।।
थूकि आऔर खखारी मुह वेश के बिगाड़ी हम,
पंक टीका गाल मे लगा दी गिरथाइन के।।
चीनी सन गोर रसगुल्लासन मीठ मुदा,
हमहुँ भूखाएल आऔर फँकने जमाइन के।