अंग अंग में जिसके शूल ,अपनी गाथा बतलाता बबूल!
अंग अंग में
जिसके शूल,
अपनी गाथा
बतलाता बबूल।
हूँ बदनाम
कांटो के
कारण
बनस्पतियों
में हूँ ,मैं
आसाधारण
मेरी पत्तियाँ
छाल,फल
और फूल ,
सब
में है
औषधीय
गुणों का
भण्डारण
लोग मुझे
कीकर भी
कहते,
पर मैं तो
हूँ आपका बबूल
अंग अंग में
जिसके शूल,
अपनी गाथा
बतलाता बबूल।
मेरी पत्तियों
का क्या
कहना
छोटी -छोटी
लगती सुंदर
समूह में
रहतीं ये
मिलजुलकर
छाल भी मेरी
बड़ी उपकारी
हम दोनों की
होती बड़ी
सराहना
घाव भरने,
त्वचा की
खुजली,
बालो का
झड़ना
कमजोर दांत
मसूड़ो का दुखना
हम दोनों का
पेस्ट लगाओ
नहीं पड़ेगा
तुम्हे इन
समस्याओं
में रहना
काम निराले
बहुत बड़े
बड़े हैं मेरे
लेकिन मैं तो
हूँ अतिस्थूल ।
अंग अंग में
जिसके शूल,
अपनी गाथा
बतलाता बबूल।
दीप ,तुम्हारे पास
तो केवल प्रकाश
ही है ,किन्तु
मेरे फल ,फूल
भी गजब निराले
फूल ,पीले
रंग के
गोलमटोल
लागे मनभावन
आते जब
लगता आ
हो गया सावन
फल का तो
क्या कहना
फल रूप में
फलियाँ होती
लगता मुझको
बहुत अपनापन
दोनों का प्रयोग
हर दवा मे होता
मैं तो पूरा ही हूँ
ओषधि अनुकूल।
अंग अंग में
जिसके शूल,
अपनी गाथा
बतलाता बबूल।
-जारी
©कुल’दीप’ मिश्रा