अंगूठा छाप सबका बाप
अंगूठा छाप सबका बाप
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राजनीति की देख लो छाप,
अंगूठा छाप सबका बाप।
तानाशाही हो जब भारी,
लोकतंत्र साबित अभिशाप।
नौकरशाही – भरष्टाचारी,
मोह-माया संग बढ़ता पाप।
धन – दौलत से भरते जेबें,
गरीबी-अमीरी कटती चाप।
जो नेता जनता को ठगता,
पीछे उनके दौड़ती खाप।
सियासत में होती हैं जोंकें,
जठर न भरता अपनेआप।
रहे चूसती लहू दिन रात,
प्रभु का करते हैं वो जाप।
मनसीरत है जो जनसेवक,
आस्तीन रखते काले सांप।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)